November 7, 2009

ज़िन्दगी ये तो नहीं, तुझको सँवारा ही न हो


ज़िन्दगी ये तो नहीं, तुझको सँवारा ही न हो
कुछ न कुछ हमने तिरा क़र्ज़ उतारा ही न हो

कू-ए-क़ातिल की बड़ी धूम है चलकर देखें
क्या ख़बर, कूचा-ए-दिलदार से प्यारा ही न हो

दिल को छू जाती है यूँ रात की आवाज़ कभी
चौंक उठता हूँ कहीं तूने पुकारा ही न हो

कभी पलकों पे चमकती है जो अश्कों की लकीर
सोचता हूँ तिरे आँचल का किनारा ही न हो

ज़िन्दगी एक ख़लिश दे के न रह जा मुझको
दर्द वो दे जो किसी तरह गवारा ही न हो

शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
न मिले भीख तो लाखों का गुज़ारा ही न हो

November 6, 2009

जब लगे ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाये

जब लगे ज़ख़्म तो क़ातिल को दुआ दी जाये
है यही रस्म तो ये रस्म उठा दी जाये

तिश्नगी कुछ तो बुझे तिश्नालब-ए-ग़म की
इक नदी दर्द के शहरों में बहा दी जाये

दिल का वो हाल हुआ ऐ ग़म-ए-दौराँ के तले
जैसे इक लाश चट्टानों में दबा दी जाये

हम ने इंसानों के दुख दर्द का हल ढूँढ लिया
क्या बुरा है जो ये अफ़वाह उड़ा दी जाये

हम को गुज़री हुई सदियाँ तो न पहचानेंगी
आने वाले किसी लम्हे को सदा दी जाये

फूल बन जाती हैं दहके हुए शोलों की लवें
शर्त ये है के उन्हें ख़ूब हवा दी जाये

कम नहीं नशे में जाड़े की गुलाबी रातें
और अगर तेरी जवानी भी मिला दी जाये

हम से पूछो ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या है
चन्द लफ़्ज़ों में कोई आह छुपा दी जाये

तुझसे मिलने की सज़ा देंगे तेरे शहर के लोग,

तुझसे मिलने की सज़ा देंगे तेरे शहर के लोग,
ये वफाओं का सिला देंगे तेरे शहर के लोग,

क्या ख़बर थी तेरे मिलने पे क़यामत होगी,
मुझको दीवाना बना देंगे तेरे शहर के लोग,

तेरी नज़रों से गिराने के लिए जान-ऐ-हया,
मुझको मुजरिम भी बना देंगे तेरे शहर के लोग,

कह के दीवाना मुझे मार रहे हैं पत्थर,
और क्या इसके सिवा देंगे तेरे शहर के लोग

October 20, 2009

और तुममे मैं समाता गया..

आज फ़िर शाम डूब रही है
तेरे इन्तज़ार की,
मैने काफ़ी कोशिश की तुम्हे भूल जाने की,
और एक मन्ज़िल के करार से,
रास्ते तो मिल गये
लेकिन हर मोड पर एक नये समझौते के साथ
ज़मीर आडे आता गया
और मन्ज़िल के करीब आकर
सारा आस्मा जैसे छूट गया,
और तुममे मैं समाता गया..

October 17, 2009

अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा


अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा
जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वो दिल नहीं रहा

जाता हूँ दाग़-ए-हसरत-ए-हस्ती लिये हुए
हूँ शम्मअ कुश्ता दरख़ुर-ए-महफ़िल नहीं रहा

मरने की ऐ दिल और ही तदबीर कर कि मैं
शायाने-दस्त-ओ-बाज़ू-ए-क़ातिल नहीं रहा

बर-रू-ए-शश जिहत दर-ए-आईनाबाज़ है
याँ इम्तियाज़-ए-नाकिस-ओ-क़ामिल नहीं रहा

वा कर दिये हैं शौक़ ने बन्द-ए-नक़ाब-ए-हुस्न
ग़ैर अज़ निगाह अब कोई हाइल नहीं रहा

गो मैं रहा रहीन-ए-सितमहा-ए-रोज़गार
लेकिन तेरे ख़याल से ग़ाफ़िल नहीं रहा

दिल से हवा-ए-किश्त-ए-वफ़ा मिट गया कि वाँ
हासिल सिवाये हसरत-ए-हासिल नहीं रहा

बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर 'असद'
जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा

October 16, 2009

अपने हाथों की लकीरों में बसाना चाहता हुँ...




इस बार कुछ ऐसा मैं चाहता हूँ
तुम को अपना बनाना चाहता हूँ

भुला के अपने सारे गम,
तुझे दिल से अपनाना चाहता हूँ

तुम्हे तुम्हारी इजाज़त से
अपने दिल में बसाना चाहता हूँ

अपने नाम के साथ जोड़ कर तुम्हारा नाम
दुनिया को सर-ए-आम दिखाना चाहता हूँ

कहीं कबुलियत की घड़ी ना आ जाये
तुम्हे हर दुआ में मांगना चाहता हूँ

हो जाओ तुम मेरी और मैं तुम्हारा
हर पल हब ये ही अहसास चाहता हूँ,

तुम से ही बस मोहब्बत की है मैंने,
अपनी सारी जिन्दगी तुम्हारे संग बिताना चाहता हूँ,

हक से कहता हूँ तुम्हे मैं अपना,
बस तुमसे भी ये कहलाना चाहता हूँ,

अपनी हाथो की लकीरों में बसना चाहता हूँ,,,,,,,,,,,,,,,,,,

कभी सुबह से कभी सहर से लड़ा करती थी,


कभी सुबह से कभी सहर से लड़ा करती थी,
मुद्दतें हुयी एक शमा यहाँ जला करती थी,

क्या बात हुयी के आज सर-ए-शाम बंद हो गयी,
एक खिड़की जो औकात-ए-सहर खुला करती थी,

सिमटा है दिल क्यों? अब के बार इस तूफ़ान में,
गरजते थे बादल, बिजली पहले भी गिरा करती थी,

कुछ कसूर-ए-किसमत-ए-अमां का है वरना,
नाउम्मीदी इस दिल से दूर ही रहा करती थी,

खता मेरी ही थी जो दुनिया से दिल लगा बैठे,

ये कमबख्त जिन्दगी कब किसी से वफ़ा करती थी,


मैं काश ये कह सकता "मुझे याद कीजिये"
कभी मेरी याद जिनकी धड़कन हुआ करती थी,

देखो आज हम उनकी दुनिया में शामिल ही नहीं,

जिनकी दुनिया की रौनक हम से हुआ करती थी,

सिर्फ इशार्रों में ही बात ना करना...


दुःख दर्द के मारों से मेरा ज़िक्र ना करना,
घर जाओ तो यारों से मेरा ज़िक्र ना करना

वो ज़ब्त न कर पाएंगे आखों के समंदर,
तुम राह गुज़रों से मेरा ज़िक्र ना करना

फूलों के नशेमन में रहा हूँ मैं सदा से,
देखो कभी खारों से मेरा ज़िक्र न करना

शायद ये अँधेरे ही मुझे राह दिखायेंगे,
अब चाँद सितारों से मेरा ज़िक्र न करना,

वो मेरी कहानी को गलत रंग ना दे दें
अफसाना निग्रानो से मेरा ज़िक्र न करना,

शायद वो मेरे हाल पे बेशक रो दें,
इस बार बहारों से मेरा ज़िक्र ना करना

ले जायेंगे गहराई में तुम को भी बहा कर,
दरिया के किनारों से मेरा ज़िक्र न करना

वो "एक" शख्स मिले तो उससे हर बात करना
सिर्फ इशार्रों में ही बात ना करना...

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ


वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ

फ़ुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे
ज़ौक़-ए-नज़ारा-ए-जमाल कहाँ

दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा
शोर-ए-सौदा-ए-ख़त-ओ-ख़ाल कहाँ

थी वो इक शख्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ

ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ

हमसे छूटा क़िमारख़ाना-ए-इश्क़
वाँ जो जायेँ गिरह में माल कहाँ

फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ

मुज़महिल हो गये क़ुवा "ग़ालिब"
वो अनासिर में ऐतदाल कहाँ

सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं


सब कहाँ कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी कि पिन्हाँ हो गईं

याद थी हमको भी रंगा-रंग बज़्माराईयाँ
लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निसियाँ हो गईं

थीं बनातुन्नाश-ए-गर्दूँ दिन को पर्दे में निहाँ
शब को उनके जी में क्या आई कि उरियाँ हो गईं

क़ैद में याक़ूब ने ली गो न यूसुफ़ की ख़बर
लेकिन आँखें रौज़न-ए-दीवार-ए-ज़िंदाँहो गईं

सब रक़ीबों से हों नाख़ुश, पर ज़नान-ए-मिस्र से
है ज़ुलैख़ा ख़ुश के महवे-माह-ए-कनआँ हो गईं

जू-ए-ख़ूँ आँखों से बहने दो कि है शाम-ए-फ़िराक़
मैं ये समझूँगा के शमएं दोफ़रोज़ाँ हो गईं

इन परीज़ादों से लेंगे ख़ुल्द में हम इन्तक़ाम
क़ुदरत-ए-हक़ से यही हूरें अगर वाँ हो गईं

नींद उसकी है, दिमाग़ उसका है, रातें उसकी हैं तेरी ज़ुल्फ़ें जिसके बाज़ू पर परीशाँ हो गईं

मैं चमन में क्या गया, गोया दबिस्ताँ खुल गया
बुलबुलें सुन कर मेरे नाले, ग़ज़लख़्वाँ हो गईं

वो निगाहें क्यूँ हुई जाती हैं यारब दिल के पार
जो मेरी कोताही-ए-क़िस्मतसे मिज़गाँ हो गईं

बस कि रोका मैंने और सीने में उभरींपै ब पै
मेरी आहें बख़िया-ए-चाक-ए-गरीबाँ हो गईं

वाँ गया भी मैं तो उनकी गालियों का क्या जवाब
याद थीं जितनी दुआयें, सर्फ़-ए-दर्बाँ हो गईं

जाँफ़िज़ा है बादा, जिसके हाथ में जाम आ गया
सब लकीरें हाथ की गोया रग-ए-जाँ हो गईं

हम मुवहिहद हैं, हमारा केश है तर्क-ए-रूसूम
मिल्लतें जब मिट गईं, अज़ज़ा-ए-ईमाँ हो गईं

रंज से ख़ूगर हुआ इन्साँ तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ि इतनी के आसाँ हो गईं

यूँ ही गर रोता रहा "ग़ालिब", तो ऐ अह्ल-ए-जहाँ
देखना इन बस्तियों को तुम कि, वीराँ हो गईं

हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है


हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है

न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा
कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे
वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़
सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है

पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार
ये शीशा-ओ-क़दह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है

बना है शह का मुसाहिब, फिरे है इतराता
वगर्ना शहर में "ग़ालिब" की आबरू क्या है

October 15, 2009

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी...

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले.

निकलना खुल्द से आदम का सुनते हैं आये हैं लेकिन,
बहुत बेआबरू होकर तेरे कूंचे से हम निकले.

मुहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं, जिस काफिर पे दम निकले.

खुदा के वास्ते पर्दा ना काबे से उठा जालिम,
कहीं ऐसा ना हो, यां भी वही काफिर सनम निकले.

कहाँ मैखाने का दरवाज़ा "ग़ालिब" और कहाँ वाइज़,
पर इतना जानते हैं, कल वो आता था के हम निकले.

कब से हूँ क्या बताऊँ...

क़ासिद के आते आते ख़त एक और लिख रखूँ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में.

कब से हूँ क्या बताऊँ जहान-ए-ख़राब में,
शब हाय हिज्र को भी रखूं गर हिसाब में.

मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम,
साक़ी ने कुछ मिला ना दिया हो शराब में.

ता फिर ना इंतज़ार में नींद आये उम्र भर,
आने का अहद कर गए आये जो ख्वाब में.

ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी कभी,
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में.

October 12, 2009

आँख से दूर न हो, दिल से उतर जाएगा

आँख से दूर न हो, दिल से उतर जाएगा
वक्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा

इतना मानूस न हो खिलवत-ऐ-ग़म से अपनी
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा

तुम सर-ऐ-राह-ऐ-वफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बाम-ऐ-रिफ़ाक़त से उतर जाएगा,

ज़िन्दगी तेरी अता है तो यह जाने वाला
तेरी बख्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा

October 11, 2009

ज़िंदगी का ये कारवाँ तन्हा

सफ़र तन्हा , रास्ता तन्हा
ज़िंदगी का ये कारवाँ तन्हा
साथी मिले , साथी चले
चल पड़े हम भी आगे तन्हा
साथ उसका होगा ना होगा , उलझने बहुत
और ख़याल तन्हा
सफ़र तन्हा रास्ता तन्हा
ज़िंदगी का ये कारवाँ तन्हा
रिश्ते छूटे साथ छूटा
निकले है हम इस कदर तन्हा
ढूँढने को अपनी मंज़िल, चल रहा
हर शख्स तन्हा......

चंद लम्हाते हिज्र का तमाशा देखो

चंद लम्हाते हिज्र का तमाशा देखो
आब-ओ-दाना है यूँ कर उजड़ता देखो
बानगी वस्ल के लम्हों की क्या बतलायें
मिला हो रोते बच्चे को खिलौना देखो
भागती दौड़ती ज़िन्दगी की मसरुफियत में
हुआ है गुम यहीं-कहीं बचपना देखो
वो शख्स इक बूँद की गुजारिश थी जिसे
सागर है मिला फिर भी मचलता देखो
वो 'मारीच' है कभी भी मिल न पाएगा
क्यों बंद आँख से उसे बारहा देखो
ज़ाहिर हो चले राज़ वहशत के सभी
क्यों उस वहशी में तुम रहनुमा देखो
दीवाना है लगे वो कही 'शातिर' तो नहीं
देखो गौर से उसे एं दोस्त ज़रा देखो

October 8, 2009

फ़िज़ा में हर तरफ़ धुंध ही धुंध है,

फ़िज़ा में हर तरफ़ धुंध ही धुंध है,
कल्पना का हर झरोखा मेरे अन्दर बंद है,
बरसती ओस में भीगी यह फ़िज़ा थर्राये,
सोच मेरी लफ़्ज़ो में क्युँ ना बदल पाये,
यह नदीयां यह झरने सभी हो गये गुमसुम,
मेरी तन्हाईयों में जैसे ये सभी हो गये है गुम,
वादीयों में गुँजता हर एक गीत मधम है,
अब तो खुश रहने कि वजह भी कम है,
वक्त तो कहता है कि ये बसन्त का मौसम है,
फिर मेरे अन्दर क्युँ सर्द वीरानीयाँ कायम है,

October 7, 2009

तेरे क़दमों पे सर होगा, कज़ा सर पे खड़ी होगी,


तेरे क़दमों पे सर होगा, कज़ा सर पे खड़ी होगी,
फिर उस सजदे का क्या कहना, अनोखी बंदगी होगी.



नसीम-ए-सुबह गुलशन में गुलों से खेलती होगी,
किसी की आखरी हिचकी किसी की दिल्लगी होगी.



दिखा दूंगा सर-ए-महफिल, बता दूंगा सर-ए-मेहशिर,
वो मेरे दिल में होंगे और दुनिया देखती होगी.



मज़ा आ जायेगा मेहशिर में फिर सुनने सुनाने का,
जुबां होगी वहां मेरी, कहानी आपकी होगी.



तुम्हें  दानिस्ता महफिल में जो देखा हो तो मुजरिम,
नज़र आखिर नज़र है, बेइरादा उठ गयी होगी

October 3, 2009

अकसर जिस्म जलता है तेरे जिस्म को छूने के लिए

लौ मेरी गोदी में पड़ा, रात की तन्हाई में
अकसर जिस्म जलता है तेरे जिस्म को छूने के लिए

हाथ उठते हैं तेरी लौ को पकड़ने के लिए
साँसें खिंच-खिंचके चटख जाती हैं तागों की तरह

हाँफ जाती है बिलखती हुई बाँहों की तलाश
और हर बार यही सोचा है तन्हाई में मैंने

अपनी गोदी से उठाकर यह तेरी गोद में रख दूँ
रुह की आग में ये आग भी शामिल कर दूँ

क्या कहूं, कैसे कहूं, सोचता - दिल डरता है...

वो उड़ती जुल्फ वो काजल वो गुलाबी सी हया
वो सादगी में भी इक नूर सा निखरता है

बरसते भीगते मौसम पे है नशा तारी
के उसके हुस्न के जलवे से कौन उभरता है

अज़ब फ़साना-e-महफिल है होश गुम हैं सभी
ज़रा ही देर वो बेपर्दा जो गुजरता है

वो दोस्त था निगेबाँ था मेरी वफाओं का
दिल आज भी वहीँ अटका वही दम भरता है

जुस्तजू उसकी है 'शातिर' है आरजू-ऐ-विसाल
क्या कहूं कैसे कहूं सोचता दिल डरता है

मै पागल हूं

मै पागल हूं
हज़ारों ख्वाहिशें दिल में मचलती रहती हैं

बेचैन रुह भटकती रही
चैन की इक सांस को दिल की धड़कन मचलती रहती हैं

बारिश भी तो थमती नहीं
दिल की धड़कन गरजने को मचलती रहती हैं

जनाज़ा कब्र का करता रहा इन्तज़ार
ज़िन्दा लाश दिल की धड़कन रुकने को मचलती रहती हैं

शरबती आँख में फैला है काजल के यूँ!!!

शरबती आँख में फैला है काजल के यूँ
लरजती शाम में श्यामल सा बादल के यूँ

खूबसूरती तमाम खुदा ने लुटा दी यहीं
ओढा है वादी ने धुंध का आँचल के यूँ

तो भी साथ होता है जब वो नहीं होता
दिमाग-ओ-दिल में है मची खलबल के यूँ

कुछ अल्फाज़ ले कर चन्द खुश लम्हों से
है संवारी सजाई मैने ग़ज़ल के यूँ

कुछ चुनिन्दा मिसरे

आप के पाओं के नीचे मेरा दिल है,
एक ज़रा आपको ज़हमत तो होगी, पर क्या आप ज़रा हटेंगे?

अल्लाह रे ये नाजुकी, चमेली का एक फूल,
सर पर जो रख दिया तो कमर तक लचक गयी||

उनसे छीके से कोई चीज़ उतरवाई है,
काम का काम है, अंगडाई की अंगडाई है||

क्या नजाकत है कि आरिज़ उनके नीले पड़ गए,
हमने तो बोसे लिए थे ख्वाब में तस्वीर के ||

कमसिनी है तो जिदे भी हैं निराली उनकी,
आज ये जिद है कि हम दर्द-ए-जिगर देखेंगे||

October 2, 2009

ज़िन्दगी का कोई और ही किनारा होगा

देखो पानी मे चलता एक अन्जान साया,
शायद किसी ने दूसरे किनारे पर अपना पैर उतारा होगा
कौन रो रहा है रात के सन्नाटे मे
शायद मेरे जैसा तन्हाई का कोई मारा होगा
अब तो बस उसी किसी एक का इन्तज़ार है,
किसी और का ख्याल ना दिल को ग़वारा होगा
ऐ ज़िन्दगी! अब के ना शामिल करना मेरा नाम
ग़र ये खेल ही दोबारा होगा
जानता हूँ अकेला हूँ फिलहाल
पर उम्मीद है कि दूसरी ओर ज़िन्दगी का कोई और ही किनारा होगा

कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया


कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं
उनको क्या हुआ आज, यह किस बात पे रोना आया
किस लिए जीते हैं हम किसके लिए जीते हैं
बारहा ऐसे सवालात पे रोना आया
कौन रोता है किसी और की खातिर ए दोस्त!
सबको अपनी ही किसी बात पे रोना आया

देखा है जिंदगी को कुछ इतना क़रीब से
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से
ऐ रूहे-उम्र जाग, कहां सो रही है तू
आवाज दे रहें पयम्बर सलीब से
इस रेंगती हयात का कब तक उठाएं बार
बीमार अब उलझने लगे हैं तबीब से

तुम अपना रंजो-ओ-ग़म, अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हें उन की क़सम, ये दुख ये हैरानी मुझे दे दो
मैं देखूं तो सही, दुनिया तुम्हें कैसे सताती है
कोई दिन के लिए अपनी निगहबानी मुझे दे दो
ये माना मैं क़ाबिल नहीं हूं इन निगाहों में
बुरा क्या है अगर इस दिल की वीरानी मुझे दे दो
वो दिल जो मैंने मांगा था मगर ग़ैरों ने पाया था
बड़ी शै है अगर उस की पशेमानी मुझे दे दो

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया,
हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया,
बरबादियों का सोग मनाना फिजूल था
बरबादियों का जश्न मनाता चला गया,
जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया,
जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया,
गम और खुशी में फर्क न महसूस हो जहां
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया


जो बीत गई सो बात गई

जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई

September 30, 2009

सरे शाम से चल रही थी पुरवाई

सरे शाम से चल रही थी पुरवाई
जिक्र उसका हुआ आँख भर आई

अहमियत उसकी क्या है बतलायें
वो इक जिस्म जिसकी मैं परछाई

खामोशी को मेरी बुज़दिली न समझो
ब्यान-ए-इश्क में है प्यार की रुसवाई

मिलना उसका अब नामुमकिन है
बारहा दिल को बात ये समझाई

गयी बूंदे कुरेद सूखे ज़ख्मों को
बरखा ये अज़ब रंग लाई...

September 26, 2009

तेरी चांदनी में नहाऊं मैं और हर तरफ बस अंधेरा हो

तेरी चांदनी में नहाऊं मैं और हर तरफ बस अंधेरा हो,
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो

तेरे मखमली बदन में,खुशबुऒं के चमन में
सदियों तक वो रात चले,सदियों दूर सवेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन , एक तेरा हो एक मेरा हो

तेरे होठों को सिल दूं मैं अपने होठों के धागे से
एक सन्नाटे में खामोशी से, तेरी बाहों ने मुझको घेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, क तेरा हो और एक मेरा हो

दोनों लिपटें एक दूजे से, गांठ सी लग जाए बदनों में
मेरे जिस्म में घर मिल जाए तुझे, तेरे जिस्म में मेरा बसेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो


आज मन कहता है कि कुछ ऐसा हो, तू बन जाए मैं , मैं बन जाऊं तू
बिस्तर पे तेरे मेरे सिवा,सिर्फ ज़ुनून और खामोशी का डेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो

अक्ल बङी या भैंस?

महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते
अकल को कोई देख ना पावे- भैंस दरस साक्षात दिखाव

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही?

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं ,

जाने क्यूं सभी शक करते हैं मुझ पर ,
जब कोई सूखा फूल मेरी किताबों में मिलता ही नहीं ,

कशिश तो बहुत थी मेरी मोहब्बत में ,
मगर क्या करूँ कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं ,

खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगू ,
पर सुना है वो भी मरने से पहले किसी से मिलता ही नहीं

September 24, 2009

एक बूढ़ा नहीफ़-ओ-खस्ता दराज़

एक बूढ़ा नहीफ़-ओ-खस्ता दराज़
इक ज़रूरत से जाता था बाज़ार
ज़ोफ-ए-पीरी से खम हुई थी कमर
राह बेचारा चलता था रुक कर
चन्द लड़कों को उस पे आई हँसी
क़द पे फबती कमान की सूझी
कहा इक लड़के ने ये उससे कि बोल
तूने कितने में ली कमान ये मोल
पीर मर्द-ए-लतीफ़-ओ-दानिश मन्द
हँस के कहने लगा कि ए फ़रज़न्द
पहुँचोगे मेरी उम्र को जिस आन
मुफ़्त में मिल जाएगी तुम्हें ये कमान

अपने दिलो में ' दीप ' को जला कर रखना ।

'deep' kee baati ke liye,

बहते अश्को की ज़ुबान नही होती,
लफ़्ज़ों मे मोहब्बत बयां नही होती,
मिले जो प्यार तो कदर करना,
किस्मत हर कीसी पर मेहरबां नही होती.
अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना।
उड़ना हवा में खुल कर लेकिन,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।
छाव में माना सुकून मिलता है बहुत
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना।
उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना।
वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना।
रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना।
तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना।
हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।
मरना जीना बस में कहाँ है अपने,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।
दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।
सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ' दीप ' को जला कर रखना ।

September 21, 2009

ख्यालों को दीवारों से टकरा रहा हूँ.

वक़्त रात का था
सब सो गए थे
आँखे मगर मेरी
लगातार सजल
ज्यूँ छत का पंखा
लगातार चकरा रहा था
तस्वीर कई तरह की
उभरी ज़हन में और मिट गयी
पलकें झपकी नहीं थी कही देर से
धीमी रौशनी झिलमिलाती रही भीगी आँखों में
पलकें नहीं झपकी यूँ आँखे सजल थी ???
या आँखे सजल थी यूँ पलकें नहीं झपकी ???
कई ख्याल मन को चौंका रहे थे
हाँ यही तो कहा था उसने जाते जाते
हालत और बदतर हो जाएंगे
हालत और बदतर हो जाएंगे
क्यूँ कहा समझ नहीं पा रहा था
धमकी थी या चेता रहा था
बहुत क्रूर मगर उसका कहा था
असर उन बोलों का कैसे कहूं मैं
नींद आँखों से दूर थी कोसो
और चाहत भी नहीं के अब पास आये
पंखे सा लगातार चकरा रहा हूँ
ख्यालों को दीवारों से टकरा रहा हूँ.
ख्यालों को दीवारों से टकरा रहा हूँ.

अपनी फ़ितरत वो कब बदलता है

अपनी फ़ितरत वो कब बदलता है
साँप जो आस्तीं में पलता है
दिल में अरमान जो मचलता है
शेर बन कर ग़ज़ल में ढलता है
मुझको अपने वजूद का एहसास
इक छ्लावा-सा बन के छलता है
जब जुनूँ हद से गुज़र जाये तो
आगही का चराग़ जलता है
उसको मत रहनुमा समझ लेना
दो क़दम ही जो साथ चलता है
वो है मौजूद मेरी नस—नस में
जैसे सीने में दर्द पलता है
रिन्द 'गौतम'! उसे नहीं कहते
पी के थोड़ी-सी जो उछलता है.

September 19, 2009

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है,

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है,
सामना आज उनसे होना है।

तोडो फेंको रखो, करो कुछ भी,
दिल हमारा है क्या खिलौना है?

जिंदगी और मौत का मतलब,
तुमको पाना है तुमको खोना है ।

इतना डरना भी क्या है दुनिया से,
जो भी होना है, वो तो होना है।

उठ के महफ़िल से मत चले जाना,
तुमसे रोशन ये कोना कोना है।

इक जरा छींक ही दो तुम,

चिपचिपे दूध से नहलाते हैं
आंगन में खड़ा कर के तुम्हें ।
शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या
घोल के सर पे लुढ़काते हैं गिलसियाँ भर के
औरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर
पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो
इक पथराई सी मुस्कान लिए
बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी।
जब धुआँ देता, लगातार पुजारी
घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर
इक जरा छींक ही दो तुम,
तो यकीं आए कि सब देख रहे हो ।

वो जो शायर था चुप सा रहता था

वो जो शायर था चुप सा रहता था
बहकी-बहकी सी बातें करता था
आँखें कानों पे रख के सुनता था
गूँगी खामोशियों की आवाज़ें!
जमा करता था चाँद के साए
और गीली सी नूर की बूँदें
रूखे-रूखे से रात के पत्ते
ओक में भर के खरखराता था
वक़्त के इस घनेरे जंगल में
कच्चे-पक्के से लम्हे चुनता था
हाँ वही, वो अजीब सा शायर
रात को उठ के कोहनियों के बल
चाँद की ठोड़ी चूमा करता था
चाँद से गिर के मर गया है वो
लोग कहते हैं ख़ुदकुशी की है|

बहते पानी पे तेरा नाम लिखा करते हैं

ये मेरे एक मित्र ने लिखा है, "साहिल - अपूर्व" आप भी ज़रा गौर कीजिये
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बहते पानी पे तेरा नाम लिखा करते हैं
लब-ए-खा़मोश का अंजाम लिखा करते हैं

कितना चुपचाप गुजरता है मौसम का सफ़र
तन्हा दिन और उदास शाम लिखा करते हैं

काश, इक बार तो वो ख़त की इबारत पढ़ते
अपनी आँखों मे सुबह-ओ-शाम लिखा करते हैं

लब-ए-बेताब की यह तिश्नगी मुक़द्दर है
अश्क बस बेबसी का जाम लिखा करते हैं

जमाने से सही, उनको पर खबर तो मिली
इश्क़ मे रुसबाई को ईनाम लिखा करते हैं

रात जलते हैं, सहर होती है बुझ जाते हैं
हम सितारों को दिल-ए-नाक़ाम लिखा करते हैं

कभी हम खुद से बिना बात रूठ जाते हैं
कभी खुद को ही ख़त गुमनाम लिखा करते हैं

लौट भी आओ, अब तन्हा नही रहा जाता
जिंदगी तुझको हम पैगाम लिखा करते हैं|

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं,
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं,

गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजे,
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं,

जाने किस किस की मौत आयी है,
आज रुख़ पे कोई नक़ाब नहीं,

वो करम उँगलियों पे गिनते हैं,
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं. 

September 16, 2009

वो ख़त के पुर्जे उड़ा रहा था,

वो ख़त के पुर्जे उड़ा रहा था,
हवाओं का रुख दिखा था,

कुछ और ही हो गया नुमायाँ,
मैं अपना लिखा मिटा रहा था,

उसी का ईमां बदल गया है,
कभी जो मेरा खुदा रहा था,

वो एक दिन एक अजनबी को,
मेरी कहानी सुना रहा था,

वो उम्र कम कर रहा था मेरी,
मैं साल अपने बढ़ा रहा था. 

कौन आया रास्ते आइना खाना हो गए

कौन आया रास्ते आइना खाना हो गए
रात रोशन हो गयी दिन भी सुहाने हो गए

ये भी मुमकिन है कि उसने मुझको पहचाना ना हो
अब उसे देखे हुए कितने जमाने हो गए

जाओ उन कमरों के आईने उठाकर फ़ेंक दो
वे अगर ये कह रहे हों हम पुराने हो गए

मेरी पलकों पर ये आंसू प्यार की तौहीन हैं
उसकी आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए

September 13, 2009

हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो


हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुमसे ज़ियादा
चाक किये हैं हमने अज़ीज़ों चार गरेबाँ तुमसे ज़ियादा
चाक-ए-जिगर मुहताज-ए-रफ़ू है आज तो दामन सिर्फ़ लहू है
एक मौसम था हम को रहा है शौक़-ए-बहाराँ तुमसे ज़ियादा
जाओ तुम अपनी बाम की ख़ातिर सारी लवें शमों की कतर लो
ज़ख़्मों के महर-ओ-माह सलामत जश्न-ए-चिराग़ाँ तुमसे ज़ियादा
हम भी हमेशा क़त्ल हुए अन्द तुम ने भी देखा दूर से लेकिन
ये न समझे हमको हुआ है जान का नुकसाँ तुमसे ज़ियादा
ज़ंजीर-ओ-दीवार ही देखी तुमने तो "मजरूह" मगर हम
कूचा-कूचा देख रहे हैं आलम-ए-ज़िंदाँ तुमसे ज़ियादा 

September 12, 2009

शाम से आँख में नमी सी है

शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है,


दफ़न कर दो हमें कि सांस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
इसकी आदत भी आदमी सी है,


कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी,
एक तस्लीम लाज़मी सी है. 

तुझे दिल से भुलाना चाहता हूँ

काँटों की चुभन सी क्यों है तन्हाई
सीने की दुखन सी क्यों है तन्हाई,

ये नजरें जहाँ तक मुझको ले जांयें ,
हर तरफ बसी क्यों है सूनी सी तन्हाई

इस दिल की अगन पहले क्या कम थी ,
मेरे साथ सुलगने लगती क्यों है तन्हाई

आंसू जो छुपाने लगता हूँ सबसे ,
बेबाक हो रो देती क्यों है तन्हाई

तुझे दिल से भुलाना चाहता हूँ ,
यादों के भंवर मे उलझा देती क्यों है तन्हाई

एक पल चैन से सोंना चाहता हूँ ,
मेरी आँखों मे जगने लगती क्यों है तन्हाई

तन्हाई से दूर नही अब रह सकता,

मेरी सांसों मे, इन आहों मे,
मेरी रातों मे, हर बातों मे,
मेरी आखों मे, इन ख्वाबों मे,
कुछ अपनों मे, कुछ सपनो मे ,
मुझे अपनी सी लगती क्यों है तन्हाई ????

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है,

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है,
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है,

हमसे पूछो इज्ज़तवालों की इज्ज़त का हाल यहाँ,
हमने भी इस शहर में रहकर थोड़ा नाम कमाया है,

उससे बिछड़े बरसों बीते, लेकिन आज ना जाने क्यूँ?
आँगन में हँसते बच्चों को बेकार धमकाया है,

कोई मिला तो हाथ मिलाया, कहीं गए तो बातें की,
घर से बाहर जब भी निकले, दिन भर बोझ उठाया है.

September 9, 2009

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं,

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं,
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं,

गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजे,
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं,

जाने किस किस की मौत आयी है,
आज रुख़ पे कोई नक़ाब नहीं,

वो करम उँगलियों पे गिनते हैं,
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं.


:: जगजीत सिंह जी की गई हुयी एक बहुत खुबसूरत ग़ज़ल ::

September 6, 2009

मेरी ज़िन्दगी किसी और की

मेरी ज़िन्दगी किसी और की, मेरे नाम का कोई और है,
मेरा अक्स है सर-ए-आइना, बस आइना कोई और है.

मेरी धडकनों में है चाप-सी, ये जुदाई भी है मिलाप सी,
मुझे क्या पता, मेरे दिल बता, मेरे साथ क्या कोई और है,

ना गए दिनों को खबर मेरी, ना शरीक़-ए-हाल नज़र तेरी,
तेरे देश में, मेरे भेस में, कोई और था, कोई और है,

वो मेरी तरफ निगेरां रहे, मेरा ध्यान जाने कहाँ रहे,
मेरी आँख में कई सूरतें, मुझे चाहता कोई और है.

September 4, 2009

तेरे निसार साक़िया जितनी पियूं पिलाए जा,

तेरे निसार साक़िया जितनी पियूं पिलाए जा,
मस्त नज़र का वास्ता, मस्त मुझे बनाए जा,

तुझको किसी से दर्द क्या, बिजली कहीं गिराए जा,
दिल जले या जिगर जले, तू यूँही मुस्कुराये जा,

सामने मेरे आ के देख, रुख़ से नक़ाब हटा के देख,
खिलमन-ए-दिल है मुन्तज़िर बर्क़े नज़र गिराए जा,

वफ़ा-ए-बदनसीब को बख्शा है तूने दर्द जो,
है कोई इसकी भी दवा, इतना ज़रा बताये जा, 

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है,

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है,
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है,

हमसे पूछो इज्ज़तवालों की इज्ज़त का हाल यहाँ,
हमने भी इस शहर में रहकर थोड़ा नाम कमाया है,

उससे बिछड़े बरसों बीते, लेकिन आज ना जाने क्यूँ?
आँगन में हँसते बच्चों को बेकार धमकाया है,

कोई मिला तो हाथ मिलाया, कहीं गए तो बातें की,
घर से बाहर जब भी निकले, दिन भर बोझ उठाया है.

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई,

आईना देखकर तसल्ली हुई,
हमको इस घर मैं जानता है कोई,

पक गया है शजर पे फल शायद,
फिर से पत्थर उछालता है कोई,

देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई| 

September 3, 2009

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,


क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं ,
जाने क्यूं सभी शक करते हैं मुझ पर ,
जब कोई सूखा फूल मेरी किताबों में मिलता ही नहीं ,
कशिश तो बहुत थी मेरी मोहब्बत में ,
मगर क्या करूँ कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं ,
खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगू ,
पर सुना है वो भी मरने से पहले किसी से मिलता ही नहीं
lavshaily: क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं ,
जाने क्यूं सभी शक करते हैं मुझ पर ,
जब कोई सूखा फूल मेरी किताबों में मिलता ही नहीं ,
कशिश तो बहुत थी मेरी मोहब्बत में ,
मगर क्या करूँ कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं ,
खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगू ,
पर सुना है वो भी मरने से पहले किसी से मिलता ही नहीं

तुम्हारे नाम का तारा मेरी रातों में खिलता है....

तुम्हारा नाम कुछ ऐसे मेरे होठों पे खिलता है
अन्धेरी रात में जैसे
अचानक चाँद, बादल के किसी कोने से झाँकता है,
और सारे मन्ज़रों में जैसे रोशनी सी फ़ैल जाती है,
और जैसे लरज़ती फ़ूलों की डाली, ओस के कतरे पहन के मुस्कुराती है।
तो खुशबू बाग की दीवार के रोके से नही रुकती,
उसी खुशबू के दाग से मेरा हर चाक सिलता है,
तुम्हारे नाम क तारा मेरी मेरी सांसों में खिलता है,
तुम्हे जब भी देखता हुं हर सफ़र की शाम से पहले,
किसी उलझी हुयी गुमनाम सी सोच की कैद में
किसी रूखे - बेनाम लमहे की खुशबू में,
किसी मौसम के दामन में किसी ख्वाहिश के पहलू में
तो इस खुशरंग मन्ज़र में तुम्हारी याद का रास्ता,
नज़ाने किस तरफ़ ले जाता है,
और फ़िर ऐसे में मेरे हमराह चलता है,
के आंखोँ में सितारों की गुज़र-गाहें सी बनती है,
धनक की कहकशों सी,
तुम्हारे नाम के इन खुशनुमा लफ़ज़ों में ढलती है
के जिन के लम्स से होठों पे जुगनु रक्स करते है,
तुम्हारे ख्वाब का रिश्ता मेरी नींदों से मिलता है,
तो दिल आबाद होता है,
मेरा हर चाक सिलता है,
तुम्हारे नाम का तारा मेरी रातों में खिलता है....

मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है

मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है

बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है

हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को

मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है

न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई

वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है

समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक

जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है

उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का

वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती

झिलमिल सी एक लड़की

झिलमिल सी एक लड़की
हवा के संग - संग लहराती सी
कुछ - कुछ नाराज़ ज़िंदगी से
और कुछ - कुछ ज़िंदगी पे मुस्कुराती सी !

किनारे की लहरों सी उठती बिखरती
नाव के जैसे डगमगाती सी
अंधेरे में पानी के किनारे कहीं
जुग्नो - ओं के संग जगमगाती सी !

ख्यालों में खोकर लातों को अपनी
कभी सुलझती कभी उलझती सी
नजाकत से जुल्फों को झटक फ़िर अपनी
धीमे से पलकें झुकाती सी !

चंचल सी नज़रें हस पडें जब अचानक
उस हसी को हया से फ़िर छुपाती सी
जो नाराज़ हो तो आँखें फैलाकर
गुस्से से मुहँ फुलाती सी !

कभी लफ्ज़ के सहारे छु लेती दिल को
कभी नज़रों से ही दास्तानें सुनती सी
कभी मुश्किलों से न डरने वाली
अंधेरे में मासूमियत से घबराती सी !

झिलमिल सी वो एक लड़की
परदे के पीछे शर्माती सी
एक पल को नज़र मिलाके मुझसे
नज़र के साथ दिल भी चुराती थी

प्यार.......


दोस्तों, वादे के मुताबिक मुझे सिर्फ और सिर्फ शेर या कवितायें ही यहाँ पोस्ट करनी चाहिए, लेकिन आज रहा नहीं गया, कहीं से सुना था तो आज सोचा लिख दूँ...
एक चिडिया को एक सफ़ेद गुलाब से प्यार हो गया , उसने गुलाब को प्रपोस किया ,
गुलाब ने जवाब दिया की जिस दिन मै लाल हो जाऊंगा उस दिन मै तुमसे प्यार करूँगा ,
जवाब सुनके चिडिया गुलाब के आस पास काँटों में लोटने लगी और उसके खून से गुलाब लाल हो गया,
ये देखके गुलाब ने भी उससे कहा की वो उससे प्यार करता है पर तब तक चिडिया मर चुकी थी


इसीलिए कहा गया है की सच्चे प्यार का कभी भी इम्तहान नहीं लेना चाहिए,
क्यूंकि सच्चा प्यार कभी इम्तहान का मोहताज नहीं होता है ,
ये वो फलसफा; है जो आँखों से बया होता है ,

ये जरूरी नहीं की तुम जिसे प्यार करो वो तुम्हे प्यार दे ,
बल्कि जरूरी ये है की जो तुम्हे प्यार करे तुम उसे जी भर कर प्यार दो,
फिर देखो ये दुनिया जन्नत सी लगेगी
प्यार खुदा की ही बन्दगी है ,खुदा भी प्यार करने वालो के साथ रहता है

तेरे बारे में जब सोचा नहीं था,


तेरे बारे में जब सोचा नहीं था,
मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था,
तेरी तस्वीर से करता था बातें,
मेरे कमरे में आईना नहीं था,
समन्दर ने मुझे प्यासा ही रखा,
मैं जब सहरा में था प्यासा नहीं था,
मनाने रुठने के खेल में,
बिछड जायेगे हम ये सोचा नहीं था,
सुना है बन्द कर ली उसने आँखे,
कई रातों से वो सोया नहीं था

खवाब देता हूँ मैं

कभी महसूस करो मुझे,
मेरे साथ बैठो, के बातें करो,
खवाब जिंदा हो उठेंगे,
क्यों कि खवाब देता हूँ मैं,
शाम कि दहलीज से निकल कर,
रात के सिरहाने से गुजरता हुआ,
तुम्हारी हसीन आखों का गुलाम,
तुम्हारी पलकों में रहता हूँ,
महसूस करो मुझे भी कभी,
क्यों कि खवाब देता हूँ मैं,
यादों की उंगली पकड़ कर,
पलको की तामीर से फिसल कर,
होटों पे मुस्कान बनकर,
हमेशा, तुम्हे खुश रखता हूँ मैं,
महसूस करो मुझे भी कभी,
क्यों कि खवाब देता हूँ मैं,
मैं वही हूँ, जिसे किसी दुआ में माँगा था तुमने,
मैं वही हूँ, जिसे खुदा ने तुम्हे बक्शा है,
बचपन की नामुराद चाहत का नतीजा हूँ मैं,
बचपन से तुम्हारे साथ रहता हूँ मैं,
अब तो महसूस करो मुझे भी कभी,
कि खवाब देता हूँ मैं,

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है,

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है,
सामना आज उनसे होना है।

तोडो फेंको रखो, करो कुछ भी,
दिल हमारा है क्या खिलौना है?

जिंदगी और मौत का मतलब,
तुमको पाना है तुमको खोना है ।

इतना डरना भी क्या है दुनिया से,
जो भी होना है, वो तो होना है।

उठ के महफ़िल से मत चले जाना,
तुमसे रोशन ये कोना कोना है। 

August 30, 2009

ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है


ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
नशे में तब से चांद है, सितारों में ख़ुमार है

मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस ख़बर पे रोऊँ मैं
कि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है

ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है

सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलाएँ और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो जार-जार है

ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है

बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाए अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है

भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है

तेरे वो तीरे-नीमकश में बात कुछ रही न अब
ख़लिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है

एक मुद्‍दत से हुए हैं वो हमारे यूँ तो


एक मुद्‍दत से हुए हैं वो हमारे यूँ तो
चांद के साथ ही रहते हैं सितारे, यूँ तो

तू नहीं तो न शिकायत कोई, सच कहता हूँ
बिन तेरे वक़्त ये गुज़रे न गुज़ारे यूँ तो

राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको
दूर रहकर वो करे ख़ूब इशारे यूँ तो

नाम तेरा कभी आने न दिया होंठों पर
हाँ, तेरे ज़िक्र से कुछ शेर सँवारे यूँ तो

तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्ज़ी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूँ तो

ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा
हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूँ तो

साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो

August 29, 2009

एक सच जिंदगी का

एक सच जिंदगी का!"

मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर.....
इस एक पल में जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।

मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और....
जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।

युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और....
जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती ।

ये सिलसिला यूँ ही चलता रहता.....

फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा..........
" तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? "

तब मैंनें कहा................
मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे
जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी,
तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं......
तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुंचूंगा.....

एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराऊंगा.......
बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा।
ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा.........

मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी......

मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी
और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी.....

किस के लिये ?


नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिये
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये

जिस धूप की दिल को ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई
इन जलती बुझती गलियों में अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये

वो शहर में था तो उस के लिये औरों से मिलना पड़ता था
अब ऐसे-वैसे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिये 


अब शहर में इस का बादल ही नहीं कोई वैसा जान-ए-ग़ज़ल ही नहीं
ऐवान-ए-ग़ज़ल में लफ़्ज़ों के गुलदान सजाऊँ किस के लिये

मुद्दत से कोई आया न गया सुनसान पड़ी है घर की फ़ज़ा
इन ख़ाली कमरों में अब शम्मा जलाऊँ किस के लिये 

जब इश्क तुम्हें हो जायेगा


मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा
दीवारों से टकराओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतारा कर लोगे
ताबीजें भी बंधवाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

तन्हाई के झूले झूलोगे, हर बात पुरानी भूलोगे
आईने से घबराओगे, जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

बेचैनी जब बढ़ जायेगी और याद किसी की आयेगी
तुम मेरी गज़लें गाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

खुद से बातें मेरी खू.....


जिस्म दमकता, जुल्फ घनेरी, रंगी लब, आँखे जादू,
संगे-मरमर, उदा बादल, सुर्ख शफक, हैरान आहू,
भिक्षु दानी, प्यासा पानी, दरिया सागर, जल गागर,
गुलशन खुशबू, कोयल कु-कु, मस्ती दारू, --- मैं और तू,

बांबी नागन, छाया आँगन, घुंघुरू छन-छन, आशा मन,
आँखे काज़ल, परबत बादल, वो जुल्फें, और ये बाजू,

रातें महकी, साँसे दहकी, नज़रें बहकी रुत लहकी,
सपन सलोना, प्रेम खिलौना, फूल बिछोना, और वो पहलू,

तुमसे दूरी, ये मज़बूरी, ज़ख्म-ऐ-कारी, बे-दारी,
तनहां रातें, सपने कातें, खुद से बातें मेरी खू.....

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही?

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं ,
जाने क्यूं सभी शक करते हैं मुझ पर ,
जब कोई सूखा फूल मेरी किताबों में मिलता ही नहीं ,
कशिश तो बहुत थी मेरी मोहब्बत में ,
मगर क्या करूँ कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं ,
खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगू ,
पर सुना है वो भी मरने से पहले किसी से मिलता ही नहीं

आज मेरी जान मुझसे जुदाई मांगती है

मेरी जान मुझसे जुदाई मांगती है, 
पास है मेरे, फिर भी मुझसे दूर जाने की दुहाई मांगती है,

हर एक पल मुझे याद करती है,
फिर भी मेरी यादों में, मुझसे रिहाई मांगती है,
देती है दुहाई अपने रस्मो रिवाजों की,
तोड़ से सारे रस्मो रिवाज़, सिमट जाना चाहती है मेरी बांहों में,
और फिर मुझसे मेरे रिवाजों की दुहाई मांगती है,
रोज आती है ख्वाबों में मेरे, बुलाती है अपने ख्वाबो में,
मेरी बाहों में पनाह ले के, मेरी बाहों से रिहाई मांगती है,
वो दूर है मुझसे, और बेताब है, मेरी बाहों में आने को ,
फिर भी सारी दुनिया से रुसवाई मांगती है.
आज मेरी जान मुझसे जुदाई मांगती है.

अजनबी शहर में अजनबी रास्ते


अजनबी शहर में अजनबी रास्ते , मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे ।
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे ।।

ज़हर मिलता रहा, ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
जिंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे ।।

ज़ख्म जब भी कोई ज़हनो दिल पे लगा, तो जिंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार है, चोट खाते रहे, गुनगुनाते रहे ।।

कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
इतनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे ।।

सख्त हालात के तेज़ तूफानों, गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।।

है इख्तियार में तेरे तो मौज-सा कर दे

है इख्तियार में तेरे तो मौज-सा कर दे
वो शख्स मेरा नहीं है उससे मेरा कर दे
मेरे खिजां कहीं खत्म ही नहीं होता
ज़रा-सी दूर तो रास्ता हरा-भरा कर दे
मैं उसके शोर को देखूं वो मेरा सब ....
मुझे चराग बना दे उसे हवा कर दे
अकेली शाम बहुत ही उदास करती है
किसी को भेज, कोई मेरा हम-नवा कर दे

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं???

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .....

मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम

मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम,
ख़ामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम,

अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम,
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम,

आरिज़ से ढ़लकते हुए शबनम के वो क़तरे,
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम,

वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया,
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम

August 25, 2009

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
मक़दूर हूँ तो साथ रखूँ नौहागर को मैं

छोड़ा न रश्क ने कि तेरे घर का नाम लूँ
हर एक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं

जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार
ऐ काश जानता न तेरी रहगुज़र को मैं

है क्या जो कस के बाँधिये मेरी बला डरे
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं

लो वो भी कहते हैं कि ये बेनंग-ओ-नाम है
ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं

चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़ रौ के साथ
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं

ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश दिया क़रार
क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदादगार को मैं

फिर बेख़ुदी में भूल गया राह-ए-कू-ए-यार
जाता वगर्ना एक दिन अपनी ख़बर को मैं

अपने पे कर रहा हूँ क़यास अहल-ए-दहर का
समझा हूँ दिल पज़ीर मता-ए-हुनर को मैं

"ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़
देखूँ अली बहादुर-ए-आलीगुहर को मैं

अगर तुम मिलने आ जाओ

तमन्ना फिर मचल जाये अगर तुम मिलने आ जाओ,
ये मौसम ही बदल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
मुझे ग़म है के मैंने ज़िन्दगी में कुछ नहीं पाया,
ये ग़म दिल से निकल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
ये दुनिया भर के झगड़े घर के किस्से काम की बातें
बला हर एक टल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम
पत्थर के ही इंसान पायें हैं
तुम शहर-ऐ-मोहब्बत कहते हो
हम जान बचा कर आए हैं
बुतखाना समझते हो जिसको
पूछो ना वहां क्या हालत है
हम लोग वहीँ से लौटे हैं
बस शुक्र करो लौट आए हैं
हम सोच रहे हैं मुद्दत से
अब उम्र गुजारें भी तो कहाँ
सेहरा में खुशी के फूल नहीं
शहरों में ग़मों के साए हैं
होठों पे तबस्सुम हल्का सा
आँखों में नमी-सी ए फाकिर
हम अहल-ऐ-मोहब्बत पर अक्सर
ऐसे भी ज़माने आए हैं.

दर्द अपनाता है पराये कौन

दर्द अपनाता है पराये कौन
कौन सुनता है और सुनाये कौन
कौन दोहराए पुरानी बातें
ग़म अभी सोया है जगाये कौन
वो जो अपने हैं, क्या वो अपने हैं
कौन दुःख झेले, आजमाए कौन
अब सुकून है तो भूलने में है
लेकिन उस शख्स को भुलाए कौन
आज फ़िर दिल है कुछ उदास-उदास
देखिये आज याद आए कौन

मैंने दिल से कहा [Maine dil se kaha]

मैंने दिल से कहा, ऐ दीवाने बता
जब से कोई मिला, तू है खोया हुआ,
ये कहानी है क्या, है ये क्या सिलसिला, ऐ दीवाने बता
मैंने दिल से कहा, ऐ दीवाने बता
धडकनों में छुपी, कैसी आवाज़ है
कैसा ये गीत है कैसा ये साज़ है,
कैसी ये बात है, कैसा ये राज़ है, ऐ दीवाने बता
मेरे दिल ने कहा, जब से कोई मिला
चाँद तारे फिजां, फूल भंवरे हवा
ये हसीं वादियाँ, नीला ये आसमान
सब है जैसे नया, मेरे दिल ने कहा
मैंने दिल से कहा, मुझको ये तो बता,
जो है तुझको मिला, उसमे क्या बात है
क्या है जादूगरी, कौन है वो परी, ऐ दीवाने बता
ना वो कोई परी, ना कोई महजबीं
ना वो दुनिया में सबसे है ज्यादा हसीं,
भोलीभाली-सी है, सीधी साधी-सी है,
लेकिन उसमे अदा एक निराली सी है
उसके बिन मेरा जीना ही बेकार है,
मैंने दिल से कहा, बात इतनी सी है,
कि तुझे प्यार है,
मेरे दिल ने कहा मुझको इकरार है,
हाँ मुझे प्यार है.

जब कभी तेरा नाम लेते हैं, [ JUB BHEE TERAA NAAM LETE HAIN]

जब कभी तेरा नाम लेते हैं,
दिल से हम इन्तकाम लेते हैं,

मेरी बरबादियों के अफ़साने,
मेरे यारों के नाम लेते हैं,

बस यही एक ज़ुर्म है अपना,
हम मुहब्बत से काम लेते हैं,

हर कदम पर गिरे, मगर सीखा,
कैसे गिरतों को थाम लेते हैं,

हम भटककर जुनूं की राहों में,
अक्ल से इन्तकाम लेते हैं.