ग़ज़ल और कविता कोष :: Gazalz, Kavita Collection
दोस्तों ये खजाना आप लोगो के लिये।
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September 4, 2009
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,
प्रस्तुतकर्ता
Unknown
at
10:52 PM
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई,
आईना देखकर तसल्ली हुई,
हमको इस घर मैं जानता है कोई,
पक गया है शजर पे फल शायद,
फिर से पत्थर उछालता है कोई,
देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई|
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