August 30, 2009

ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है


ख़बर मिली है जब से ये कि उनको हमसे प्यार है
नशे में तब से चांद है, सितारों में ख़ुमार है

मैं रोऊँ अपने कत्ल पर, या इस ख़बर पे रोऊँ मैं
कि कातिलों का सरगना तो हाय मेरा यार है

ये जादू है लबों का तेरे या सरूर इश्क का
कि तू कहे है झूठ और हमको ऐतबार है

सुलगती ख़्वाहिशों की धूनी चल कहीं जलाएँ और
कुरेदना यहाँ पे क्या, ये दिल तो जार-जार है

ले मुट्ठियों में पेशगी महीने भर मजूरी की
वो उलझनों में है खड़ा कि किसका क्या उधार है

बनावटी ये तितलियाँ, ये रंगों की निशानियाँ
न भाए अब मिज़ाज को कि उम्र का उतार है

भरी-भरी निगाह से वो देखना तेरा हमें
नसों में जलतरंग जैसा बज उठा सितार है

तेरे वो तीरे-नीमकश में बात कुछ रही न अब
ख़लिश तो दे है तीर, जो जिगर के आर-पार है

एक मुद्‍दत से हुए हैं वो हमारे यूँ तो


एक मुद्‍दत से हुए हैं वो हमारे यूँ तो
चांद के साथ ही रहते हैं सितारे, यूँ तो

तू नहीं तो न शिकायत कोई, सच कहता हूँ
बिन तेरे वक़्त ये गुज़रे न गुज़ारे यूँ तो

राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको
दूर रहकर वो करे ख़ूब इशारे यूँ तो

नाम तेरा कभी आने न दिया होंठों पर
हाँ, तेरे ज़िक्र से कुछ शेर सँवारे यूँ तो

तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्ज़ी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूँ तो

ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा
हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूँ तो

साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो

August 29, 2009

एक सच जिंदगी का

एक सच जिंदगी का!"

मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर.....
इस एक पल में जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।

मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और....
जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।

युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और....
जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती ।

ये सिलसिला यूँ ही चलता रहता.....

फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा..........
" तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? "

तब मैंनें कहा................
मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे
जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी,
तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं......
तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुंचूंगा.....

एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराऊंगा.......
बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा।
ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा.........

मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी......

मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी
और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी.....

किस के लिये ?


नये कपड़े बदल कर जाऊँ कहाँ और बाल बनाऊँ किस के लिये
वो शख़्स तो शहर ही छोड़ गया अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये

जिस धूप की दिल को ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई
इन जलती बुझती गलियों में अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिये

वो शहर में था तो उस के लिये औरों से मिलना पड़ता था
अब ऐसे-वैसे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिये 


अब शहर में इस का बादल ही नहीं कोई वैसा जान-ए-ग़ज़ल ही नहीं
ऐवान-ए-ग़ज़ल में लफ़्ज़ों के गुलदान सजाऊँ किस के लिये

मुद्दत से कोई आया न गया सुनसान पड़ी है घर की फ़ज़ा
इन ख़ाली कमरों में अब शम्मा जलाऊँ किस के लिये 

जब इश्क तुम्हें हो जायेगा


मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा
दीवारों से टकराओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतारा कर लोगे
ताबीजें भी बंधवाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

तन्हाई के झूले झूलोगे, हर बात पुरानी भूलोगे
आईने से घबराओगे, जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

बेचैनी जब बढ़ जायेगी और याद किसी की आयेगी
तुम मेरी गज़लें गाओगे जब इश्क तुम्हें हो जायेगा

खुद से बातें मेरी खू.....


जिस्म दमकता, जुल्फ घनेरी, रंगी लब, आँखे जादू,
संगे-मरमर, उदा बादल, सुर्ख शफक, हैरान आहू,
भिक्षु दानी, प्यासा पानी, दरिया सागर, जल गागर,
गुलशन खुशबू, कोयल कु-कु, मस्ती दारू, --- मैं और तू,

बांबी नागन, छाया आँगन, घुंघुरू छन-छन, आशा मन,
आँखे काज़ल, परबत बादल, वो जुल्फें, और ये बाजू,

रातें महकी, साँसे दहकी, नज़रें बहकी रुत लहकी,
सपन सलोना, प्रेम खिलौना, फूल बिछोना, और वो पहलू,

तुमसे दूरी, ये मज़बूरी, ज़ख्म-ऐ-कारी, बे-दारी,
तनहां रातें, सपने कातें, खुद से बातें मेरी खू.....

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही?

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं ,
जाने क्यूं सभी शक करते हैं मुझ पर ,
जब कोई सूखा फूल मेरी किताबों में मिलता ही नहीं ,
कशिश तो बहुत थी मेरी मोहब्बत में ,
मगर क्या करूँ कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं ,
खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगू ,
पर सुना है वो भी मरने से पहले किसी से मिलता ही नहीं

आज मेरी जान मुझसे जुदाई मांगती है

मेरी जान मुझसे जुदाई मांगती है, 
पास है मेरे, फिर भी मुझसे दूर जाने की दुहाई मांगती है,

हर एक पल मुझे याद करती है,
फिर भी मेरी यादों में, मुझसे रिहाई मांगती है,
देती है दुहाई अपने रस्मो रिवाजों की,
तोड़ से सारे रस्मो रिवाज़, सिमट जाना चाहती है मेरी बांहों में,
और फिर मुझसे मेरे रिवाजों की दुहाई मांगती है,
रोज आती है ख्वाबों में मेरे, बुलाती है अपने ख्वाबो में,
मेरी बाहों में पनाह ले के, मेरी बाहों से रिहाई मांगती है,
वो दूर है मुझसे, और बेताब है, मेरी बाहों में आने को ,
फिर भी सारी दुनिया से रुसवाई मांगती है.
आज मेरी जान मुझसे जुदाई मांगती है.

अजनबी शहर में अजनबी रास्ते


अजनबी शहर में अजनबी रास्ते , मेरी तन्हाई पर मुस्कुराते रहे ।
मैं बहुत देर तक यूं ही चलता रहा, तुम बहुत देर तक याद आते रहे ।।

ज़हर मिलता रहा, ज़हर पीते रहे, रोज़ मरते रहे रोज़ जीते रहे,
जिंदगी भी हमें आज़माती रही, और हम भी उसे आज़माते रहे ।।

ज़ख्म जब भी कोई ज़हनो दिल पे लगा, तो जिंदगी की तरफ़ एक दरीचा खुला
हम भी गोया किसी साज़ के तार है, चोट खाते रहे, गुनगुनाते रहे ।।

कल कुछ ऐसा हुआ मैं बहुत थक गया, इसलिये सुन के भी अनसुनी कर गया,
इतनी यादों के भटके हुए कारवां, दिल के जख्मों के दर खटखटाते रहे ।।

सख्त हालात के तेज़ तूफानों, गिर गया था हमारा जुनूने वफ़ा
हम चिराग़े-तमन्ना़ जलाते रहे, वो चिराग़े-तमन्ना बुझाते रहे ।।

है इख्तियार में तेरे तो मौज-सा कर दे

है इख्तियार में तेरे तो मौज-सा कर दे
वो शख्स मेरा नहीं है उससे मेरा कर दे
मेरे खिजां कहीं खत्म ही नहीं होता
ज़रा-सी दूर तो रास्ता हरा-भरा कर दे
मैं उसके शोर को देखूं वो मेरा सब ....
मुझे चराग बना दे उसे हवा कर दे
अकेली शाम बहुत ही उदास करती है
किसी को भेज, कोई मेरा हम-नवा कर दे

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं???

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .....

मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम

मुद्दत में वो फिर ताज़ा मुलाक़ात का आलम,
ख़ामोश अदाओं में वो जज़्बात का आलम,

अल्लाह रे वो शिद्दत-ए-जज़्बात का आलम,
कुछ कह के वो भूली हुई हर बात का आलम,

आरिज़ से ढ़लकते हुए शबनम के वो क़तरे,
आँखों से झलकता हुआ बरसात का आलम,

वो नज़रों ही नज़रों में सवालात की दुनिया,
वो आँखों ही आँखों में जवाबात का आलम

August 25, 2009

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं
मक़दूर हूँ तो साथ रखूँ नौहागर को मैं

छोड़ा न रश्क ने कि तेरे घर का नाम लूँ
हर एक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं

जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार
ऐ काश जानता न तेरी रहगुज़र को मैं

है क्या जो कस के बाँधिये मेरी बला डरे
क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं

लो वो भी कहते हैं कि ये बेनंग-ओ-नाम है
ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं

चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़ रौ के साथ
पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं

ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश दिया क़रार
क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदादगार को मैं

फिर बेख़ुदी में भूल गया राह-ए-कू-ए-यार
जाता वगर्ना एक दिन अपनी ख़बर को मैं

अपने पे कर रहा हूँ क़यास अहल-ए-दहर का
समझा हूँ दिल पज़ीर मता-ए-हुनर को मैं

"ग़ालिब" ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-ए-नाज़
देखूँ अली बहादुर-ए-आलीगुहर को मैं

अगर तुम मिलने आ जाओ

तमन्ना फिर मचल जाये अगर तुम मिलने आ जाओ,
ये मौसम ही बदल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
मुझे ग़म है के मैंने ज़िन्दगी में कुछ नहीं पाया,
ये ग़म दिल से निकल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
ये दुनिया भर के झगड़े घर के किस्से काम की बातें
बला हर एक टल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम
पत्थर के ही इंसान पायें हैं
तुम शहर-ऐ-मोहब्बत कहते हो
हम जान बचा कर आए हैं
बुतखाना समझते हो जिसको
पूछो ना वहां क्या हालत है
हम लोग वहीँ से लौटे हैं
बस शुक्र करो लौट आए हैं
हम सोच रहे हैं मुद्दत से
अब उम्र गुजारें भी तो कहाँ
सेहरा में खुशी के फूल नहीं
शहरों में ग़मों के साए हैं
होठों पे तबस्सुम हल्का सा
आँखों में नमी-सी ए फाकिर
हम अहल-ऐ-मोहब्बत पर अक्सर
ऐसे भी ज़माने आए हैं.

दर्द अपनाता है पराये कौन

दर्द अपनाता है पराये कौन
कौन सुनता है और सुनाये कौन
कौन दोहराए पुरानी बातें
ग़म अभी सोया है जगाये कौन
वो जो अपने हैं, क्या वो अपने हैं
कौन दुःख झेले, आजमाए कौन
अब सुकून है तो भूलने में है
लेकिन उस शख्स को भुलाए कौन
आज फ़िर दिल है कुछ उदास-उदास
देखिये आज याद आए कौन

मैंने दिल से कहा [Maine dil se kaha]

मैंने दिल से कहा, ऐ दीवाने बता
जब से कोई मिला, तू है खोया हुआ,
ये कहानी है क्या, है ये क्या सिलसिला, ऐ दीवाने बता
मैंने दिल से कहा, ऐ दीवाने बता
धडकनों में छुपी, कैसी आवाज़ है
कैसा ये गीत है कैसा ये साज़ है,
कैसी ये बात है, कैसा ये राज़ है, ऐ दीवाने बता
मेरे दिल ने कहा, जब से कोई मिला
चाँद तारे फिजां, फूल भंवरे हवा
ये हसीं वादियाँ, नीला ये आसमान
सब है जैसे नया, मेरे दिल ने कहा
मैंने दिल से कहा, मुझको ये तो बता,
जो है तुझको मिला, उसमे क्या बात है
क्या है जादूगरी, कौन है वो परी, ऐ दीवाने बता
ना वो कोई परी, ना कोई महजबीं
ना वो दुनिया में सबसे है ज्यादा हसीं,
भोलीभाली-सी है, सीधी साधी-सी है,
लेकिन उसमे अदा एक निराली सी है
उसके बिन मेरा जीना ही बेकार है,
मैंने दिल से कहा, बात इतनी सी है,
कि तुझे प्यार है,
मेरे दिल ने कहा मुझको इकरार है,
हाँ मुझे प्यार है.

जब कभी तेरा नाम लेते हैं, [ JUB BHEE TERAA NAAM LETE HAIN]

जब कभी तेरा नाम लेते हैं,
दिल से हम इन्तकाम लेते हैं,

मेरी बरबादियों के अफ़साने,
मेरे यारों के नाम लेते हैं,

बस यही एक ज़ुर्म है अपना,
हम मुहब्बत से काम लेते हैं,

हर कदम पर गिरे, मगर सीखा,
कैसे गिरतों को थाम लेते हैं,

हम भटककर जुनूं की राहों में,
अक्ल से इन्तकाम लेते हैं.