September 30, 2009

सरे शाम से चल रही थी पुरवाई

सरे शाम से चल रही थी पुरवाई
जिक्र उसका हुआ आँख भर आई

अहमियत उसकी क्या है बतलायें
वो इक जिस्म जिसकी मैं परछाई

खामोशी को मेरी बुज़दिली न समझो
ब्यान-ए-इश्क में है प्यार की रुसवाई

मिलना उसका अब नामुमकिन है
बारहा दिल को बात ये समझाई

गयी बूंदे कुरेद सूखे ज़ख्मों को
बरखा ये अज़ब रंग लाई...

September 26, 2009

तेरी चांदनी में नहाऊं मैं और हर तरफ बस अंधेरा हो

तेरी चांदनी में नहाऊं मैं और हर तरफ बस अंधेरा हो,
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो

तेरे मखमली बदन में,खुशबुऒं के चमन में
सदियों तक वो रात चले,सदियों दूर सवेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन , एक तेरा हो एक मेरा हो

तेरे होठों को सिल दूं मैं अपने होठों के धागे से
एक सन्नाटे में खामोशी से, तेरी बाहों ने मुझको घेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, क तेरा हो और एक मेरा हो

दोनों लिपटें एक दूजे से, गांठ सी लग जाए बदनों में
मेरे जिस्म में घर मिल जाए तुझे, तेरे जिस्म में मेरा बसेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो


आज मन कहता है कि कुछ ऐसा हो, तू बन जाए मैं , मैं बन जाऊं तू
बिस्तर पे तेरे मेरे सिवा,सिर्फ ज़ुनून और खामोशी का डेरा हो
एक चादर में लिपटे दो बदन, एक तेरा हो और एक मेरा हो

अक्ल बङी या भैंस?

महामूर्ख दरबार में, लगा अनोखा केस
फसा हुआ है मामला, अक्ल बङी या भैंस
अक्ल बङी या भैंस, दलीलें बहुत सी आयीं
महामूर्ख दरबार की अब,देखो सुनवाई
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस सदा ही अकल पे भारी
भैंस मेरी जब चर आये चारा- पाँच सेर हम दूध निकारा
कोई अकल ना यह कर पावे- चारा खा कर दूध बनावे
अक्ल घास जब चरने जाये- हार जाय नर अति दुख पाये
भैंस का चारा लालू खायो- निज घरवारि सी.एम. बनवायो
तुमहू भैंस का चारा खाओ- बीवी को सी.एम. बनवाओ
मोटी अकल मन्दमति होई- मोटी भैंस दूध अति होई
अकल इश्क़ कर कर के रोये- भैंस का कोई बाँयफ्रेन्ड ना होये
अकल तो ले मोबाइल घूमे- एस.एम.एस. पा पा के झूमे
भैंस मेरी डायरेक्ट पुकारे- कबहूँ मिस्ड काल ना मारे
भैंस कभी सिगरेट ना पीती- भैंस बिना दारू के जीती
भैंस कभी ना पान चबाये - ना ही इसको ड्रग्स सुहाये
शक्तिशालिनी शाकाहारी- भैंस हमारी कितनी प्यारी
अकलमन्द को कोई ना जाने- भैंस को सारा जग पहचाने
जाकी अकल मे गोबर होये- सो इन्सान पटक सर रोये
मंगल भवन अमंगल हारी- भैंस का गोबर अकल पे भारी
भैंस मरे तो बनते जूते- अकल मरे तो पङते जूते
अकल को कोई देख ना पावे- भैंस दरस साक्षात दिखाव

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही?

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं ,

जाने क्यूं सभी शक करते हैं मुझ पर ,
जब कोई सूखा फूल मेरी किताबों में मिलता ही नहीं ,

कशिश तो बहुत थी मेरी मोहब्बत में ,
मगर क्या करूँ कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं ,

खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगू ,
पर सुना है वो भी मरने से पहले किसी से मिलता ही नहीं

September 24, 2009

एक बूढ़ा नहीफ़-ओ-खस्ता दराज़

एक बूढ़ा नहीफ़-ओ-खस्ता दराज़
इक ज़रूरत से जाता था बाज़ार
ज़ोफ-ए-पीरी से खम हुई थी कमर
राह बेचारा चलता था रुक कर
चन्द लड़कों को उस पे आई हँसी
क़द पे फबती कमान की सूझी
कहा इक लड़के ने ये उससे कि बोल
तूने कितने में ली कमान ये मोल
पीर मर्द-ए-लतीफ़-ओ-दानिश मन्द
हँस के कहने लगा कि ए फ़रज़न्द
पहुँचोगे मेरी उम्र को जिस आन
मुफ़्त में मिल जाएगी तुम्हें ये कमान

अपने दिलो में ' दीप ' को जला कर रखना ।

'deep' kee baati ke liye,

बहते अश्को की ज़ुबान नही होती,
लफ़्ज़ों मे मोहब्बत बयां नही होती,
मिले जो प्यार तो कदर करना,
किस्मत हर कीसी पर मेहरबां नही होती.
अपने दिल को पत्थर का बना कर रखना,
हर चोट के निशान को सजा कर रखना।
उड़ना हवा में खुल कर लेकिन,
अपने कदमों को ज़मी से मिला कर रखना ।
छाव में माना सुकून मिलता है बहुत
फिर भी धूप में खुद को जला कर रखना।
उम्रभर साथ तो रिश्ते नहीं रहते हैं,
यादों में हर किसी को जिन्दा रखना।
वक्त के साथ चलते-चलते , खो ना जाना,
खुद को दुनिया से छिपा कर रखना।
रातभर जाग कर रोना चाहो जो कभी,
अपने चेहरे को दोस्तों से छिपा कर रखना।
तुफानो को कब तक रोक सकोगे तुम,
कश्ती और मांझी का याद पता रखना।
हर कहीं जिन्दगी एक सी ही होती हैं ,
अपने ज़ख्मों को अपनो को बता कर रखना ।
मन्दिरो में ही मिलते हो भगवान जरुरी नहीं ,
हर किसी से रिश्ता बना कर रखना ।
मरना जीना बस में कहाँ है अपने,
हर पल में जिन्दगी का लुफ्त उठाये रखना ।
दर्द कभी आखरी नहीं होता ,
अपनी आँखों में अश्को को बचा कर रखना ।
सूरज तो रोज ही आता है मगर ,
अपने दिलो में ' दीप ' को जला कर रखना ।

September 21, 2009

ख्यालों को दीवारों से टकरा रहा हूँ.

वक़्त रात का था
सब सो गए थे
आँखे मगर मेरी
लगातार सजल
ज्यूँ छत का पंखा
लगातार चकरा रहा था
तस्वीर कई तरह की
उभरी ज़हन में और मिट गयी
पलकें झपकी नहीं थी कही देर से
धीमी रौशनी झिलमिलाती रही भीगी आँखों में
पलकें नहीं झपकी यूँ आँखे सजल थी ???
या आँखे सजल थी यूँ पलकें नहीं झपकी ???
कई ख्याल मन को चौंका रहे थे
हाँ यही तो कहा था उसने जाते जाते
हालत और बदतर हो जाएंगे
हालत और बदतर हो जाएंगे
क्यूँ कहा समझ नहीं पा रहा था
धमकी थी या चेता रहा था
बहुत क्रूर मगर उसका कहा था
असर उन बोलों का कैसे कहूं मैं
नींद आँखों से दूर थी कोसो
और चाहत भी नहीं के अब पास आये
पंखे सा लगातार चकरा रहा हूँ
ख्यालों को दीवारों से टकरा रहा हूँ.
ख्यालों को दीवारों से टकरा रहा हूँ.

अपनी फ़ितरत वो कब बदलता है

अपनी फ़ितरत वो कब बदलता है
साँप जो आस्तीं में पलता है
दिल में अरमान जो मचलता है
शेर बन कर ग़ज़ल में ढलता है
मुझको अपने वजूद का एहसास
इक छ्लावा-सा बन के छलता है
जब जुनूँ हद से गुज़र जाये तो
आगही का चराग़ जलता है
उसको मत रहनुमा समझ लेना
दो क़दम ही जो साथ चलता है
वो है मौजूद मेरी नस—नस में
जैसे सीने में दर्द पलता है
रिन्द 'गौतम'! उसे नहीं कहते
पी के थोड़ी-सी जो उछलता है.

September 19, 2009

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है,

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है,
सामना आज उनसे होना है।

तोडो फेंको रखो, करो कुछ भी,
दिल हमारा है क्या खिलौना है?

जिंदगी और मौत का मतलब,
तुमको पाना है तुमको खोना है ।

इतना डरना भी क्या है दुनिया से,
जो भी होना है, वो तो होना है।

उठ के महफ़िल से मत चले जाना,
तुमसे रोशन ये कोना कोना है।

इक जरा छींक ही दो तुम,

चिपचिपे दूध से नहलाते हैं
आंगन में खड़ा कर के तुम्हें ।
शहद भी, तेल भी, हल्दी भी, ना जाने क्या क्या
घोल के सर पे लुढ़काते हैं गिलसियाँ भर के
औरतें गाती हैं जब तीव्र सुरों में मिल कर
पाँव पर पाँव लगाए खड़े रहते हो
इक पथराई सी मुस्कान लिए
बुत नहीं हो तो परेशानी तो होती होगी।
जब धुआँ देता, लगातार पुजारी
घी जलाता है कई तरह के छौंके देकर
इक जरा छींक ही दो तुम,
तो यकीं आए कि सब देख रहे हो ।

वो जो शायर था चुप सा रहता था

वो जो शायर था चुप सा रहता था
बहकी-बहकी सी बातें करता था
आँखें कानों पे रख के सुनता था
गूँगी खामोशियों की आवाज़ें!
जमा करता था चाँद के साए
और गीली सी नूर की बूँदें
रूखे-रूखे से रात के पत्ते
ओक में भर के खरखराता था
वक़्त के इस घनेरे जंगल में
कच्चे-पक्के से लम्हे चुनता था
हाँ वही, वो अजीब सा शायर
रात को उठ के कोहनियों के बल
चाँद की ठोड़ी चूमा करता था
चाँद से गिर के मर गया है वो
लोग कहते हैं ख़ुदकुशी की है|

बहते पानी पे तेरा नाम लिखा करते हैं

ये मेरे एक मित्र ने लिखा है, "साहिल - अपूर्व" आप भी ज़रा गौर कीजिये
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बहते पानी पे तेरा नाम लिखा करते हैं
लब-ए-खा़मोश का अंजाम लिखा करते हैं

कितना चुपचाप गुजरता है मौसम का सफ़र
तन्हा दिन और उदास शाम लिखा करते हैं

काश, इक बार तो वो ख़त की इबारत पढ़ते
अपनी आँखों मे सुबह-ओ-शाम लिखा करते हैं

लब-ए-बेताब की यह तिश्नगी मुक़द्दर है
अश्क बस बेबसी का जाम लिखा करते हैं

जमाने से सही, उनको पर खबर तो मिली
इश्क़ मे रुसबाई को ईनाम लिखा करते हैं

रात जलते हैं, सहर होती है बुझ जाते हैं
हम सितारों को दिल-ए-नाक़ाम लिखा करते हैं

कभी हम खुद से बिना बात रूठ जाते हैं
कभी खुद को ही ख़त गुमनाम लिखा करते हैं

लौट भी आओ, अब तन्हा नही रहा जाता
जिंदगी तुझको हम पैगाम लिखा करते हैं|

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं,
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं,

गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजे,
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं,

जाने किस किस की मौत आयी है,
आज रुख़ पे कोई नक़ाब नहीं,

वो करम उँगलियों पे गिनते हैं,
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं. 

September 16, 2009

वो ख़त के पुर्जे उड़ा रहा था,

वो ख़त के पुर्जे उड़ा रहा था,
हवाओं का रुख दिखा था,

कुछ और ही हो गया नुमायाँ,
मैं अपना लिखा मिटा रहा था,

उसी का ईमां बदल गया है,
कभी जो मेरा खुदा रहा था,

वो एक दिन एक अजनबी को,
मेरी कहानी सुना रहा था,

वो उम्र कम कर रहा था मेरी,
मैं साल अपने बढ़ा रहा था. 

कौन आया रास्ते आइना खाना हो गए

कौन आया रास्ते आइना खाना हो गए
रात रोशन हो गयी दिन भी सुहाने हो गए

ये भी मुमकिन है कि उसने मुझको पहचाना ना हो
अब उसे देखे हुए कितने जमाने हो गए

जाओ उन कमरों के आईने उठाकर फ़ेंक दो
वे अगर ये कह रहे हों हम पुराने हो गए

मेरी पलकों पर ये आंसू प्यार की तौहीन हैं
उसकी आँखों से गिरे मोती के दाने हो गए

September 13, 2009

हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो


हम को जुनूँ क्या सिखलाते हो हम थे परेशाँ तुमसे ज़ियादा
चाक किये हैं हमने अज़ीज़ों चार गरेबाँ तुमसे ज़ियादा
चाक-ए-जिगर मुहताज-ए-रफ़ू है आज तो दामन सिर्फ़ लहू है
एक मौसम था हम को रहा है शौक़-ए-बहाराँ तुमसे ज़ियादा
जाओ तुम अपनी बाम की ख़ातिर सारी लवें शमों की कतर लो
ज़ख़्मों के महर-ओ-माह सलामत जश्न-ए-चिराग़ाँ तुमसे ज़ियादा
हम भी हमेशा क़त्ल हुए अन्द तुम ने भी देखा दूर से लेकिन
ये न समझे हमको हुआ है जान का नुकसाँ तुमसे ज़ियादा
ज़ंजीर-ओ-दीवार ही देखी तुमने तो "मजरूह" मगर हम
कूचा-कूचा देख रहे हैं आलम-ए-ज़िंदाँ तुमसे ज़ियादा 

September 12, 2009

शाम से आँख में नमी सी है

शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है,


दफ़न कर दो हमें कि सांस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
इसकी आदत भी आदमी सी है,


कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी,
एक तस्लीम लाज़मी सी है. 

तुझे दिल से भुलाना चाहता हूँ

काँटों की चुभन सी क्यों है तन्हाई
सीने की दुखन सी क्यों है तन्हाई,

ये नजरें जहाँ तक मुझको ले जांयें ,
हर तरफ बसी क्यों है सूनी सी तन्हाई

इस दिल की अगन पहले क्या कम थी ,
मेरे साथ सुलगने लगती क्यों है तन्हाई

आंसू जो छुपाने लगता हूँ सबसे ,
बेबाक हो रो देती क्यों है तन्हाई

तुझे दिल से भुलाना चाहता हूँ ,
यादों के भंवर मे उलझा देती क्यों है तन्हाई

एक पल चैन से सोंना चाहता हूँ ,
मेरी आँखों मे जगने लगती क्यों है तन्हाई

तन्हाई से दूर नही अब रह सकता,

मेरी सांसों मे, इन आहों मे,
मेरी रातों मे, हर बातों मे,
मेरी आखों मे, इन ख्वाबों मे,
कुछ अपनों मे, कुछ सपनो मे ,
मुझे अपनी सी लगती क्यों है तन्हाई ????

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है,

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है,
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है,

हमसे पूछो इज्ज़तवालों की इज्ज़त का हाल यहाँ,
हमने भी इस शहर में रहकर थोड़ा नाम कमाया है,

उससे बिछड़े बरसों बीते, लेकिन आज ना जाने क्यूँ?
आँगन में हँसते बच्चों को बेकार धमकाया है,

कोई मिला तो हाथ मिलाया, कहीं गए तो बातें की,
घर से बाहर जब भी निकले, दिन भर बोझ उठाया है.

September 9, 2009

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं,

तुम नहीं, ग़म नहीं, शराब नहीं,
ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं,

गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजे,
दिल से बेहतर कोई किताब नहीं,

जाने किस किस की मौत आयी है,
आज रुख़ पे कोई नक़ाब नहीं,

वो करम उँगलियों पे गिनते हैं,
ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं.


:: जगजीत सिंह जी की गई हुयी एक बहुत खुबसूरत ग़ज़ल ::

September 6, 2009

मेरी ज़िन्दगी किसी और की

मेरी ज़िन्दगी किसी और की, मेरे नाम का कोई और है,
मेरा अक्स है सर-ए-आइना, बस आइना कोई और है.

मेरी धडकनों में है चाप-सी, ये जुदाई भी है मिलाप सी,
मुझे क्या पता, मेरे दिल बता, मेरे साथ क्या कोई और है,

ना गए दिनों को खबर मेरी, ना शरीक़-ए-हाल नज़र तेरी,
तेरे देश में, मेरे भेस में, कोई और था, कोई और है,

वो मेरी तरफ निगेरां रहे, मेरा ध्यान जाने कहाँ रहे,
मेरी आँख में कई सूरतें, मुझे चाहता कोई और है.

September 4, 2009

तेरे निसार साक़िया जितनी पियूं पिलाए जा,

तेरे निसार साक़िया जितनी पियूं पिलाए जा,
मस्त नज़र का वास्ता, मस्त मुझे बनाए जा,

तुझको किसी से दर्द क्या, बिजली कहीं गिराए जा,
दिल जले या जिगर जले, तू यूँही मुस्कुराये जा,

सामने मेरे आ के देख, रुख़ से नक़ाब हटा के देख,
खिलमन-ए-दिल है मुन्तज़िर बर्क़े नज़र गिराए जा,

वफ़ा-ए-बदनसीब को बख्शा है तूने दर्द जो,
है कोई इसकी भी दवा, इतना ज़रा बताये जा, 

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है,

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है,
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है,

हमसे पूछो इज्ज़तवालों की इज्ज़त का हाल यहाँ,
हमने भी इस शहर में रहकर थोड़ा नाम कमाया है,

उससे बिछड़े बरसों बीते, लेकिन आज ना जाने क्यूँ?
आँगन में हँसते बच्चों को बेकार धमकाया है,

कोई मिला तो हाथ मिलाया, कहीं गए तो बातें की,
घर से बाहर जब भी निकले, दिन भर बोझ उठाया है.

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई,
जैसे एहसान उतारता है कोई,

आईना देखकर तसल्ली हुई,
हमको इस घर मैं जानता है कोई,

पक गया है शजर पे फल शायद,
फिर से पत्थर उछालता है कोई,

देर से गूंजते हैं सन्नाटे,
जैसे हमको पुकारता है कोई| 

September 3, 2009

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,


क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं ,
जाने क्यूं सभी शक करते हैं मुझ पर ,
जब कोई सूखा फूल मेरी किताबों में मिलता ही नहीं ,
कशिश तो बहुत थी मेरी मोहब्बत में ,
मगर क्या करूँ कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं ,
खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगू ,
पर सुना है वो भी मरने से पहले किसी से मिलता ही नहीं
lavshaily: क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं ,
जाने क्यूं सभी शक करते हैं मुझ पर ,
जब कोई सूखा फूल मेरी किताबों में मिलता ही नहीं ,
कशिश तो बहुत थी मेरी मोहब्बत में ,
मगर क्या करूँ कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं ,
खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगू ,
पर सुना है वो भी मरने से पहले किसी से मिलता ही नहीं

तुम्हारे नाम का तारा मेरी रातों में खिलता है....

तुम्हारा नाम कुछ ऐसे मेरे होठों पे खिलता है
अन्धेरी रात में जैसे
अचानक चाँद, बादल के किसी कोने से झाँकता है,
और सारे मन्ज़रों में जैसे रोशनी सी फ़ैल जाती है,
और जैसे लरज़ती फ़ूलों की डाली, ओस के कतरे पहन के मुस्कुराती है।
तो खुशबू बाग की दीवार के रोके से नही रुकती,
उसी खुशबू के दाग से मेरा हर चाक सिलता है,
तुम्हारे नाम क तारा मेरी मेरी सांसों में खिलता है,
तुम्हे जब भी देखता हुं हर सफ़र की शाम से पहले,
किसी उलझी हुयी गुमनाम सी सोच की कैद में
किसी रूखे - बेनाम लमहे की खुशबू में,
किसी मौसम के दामन में किसी ख्वाहिश के पहलू में
तो इस खुशरंग मन्ज़र में तुम्हारी याद का रास्ता,
नज़ाने किस तरफ़ ले जाता है,
और फ़िर ऐसे में मेरे हमराह चलता है,
के आंखोँ में सितारों की गुज़र-गाहें सी बनती है,
धनक की कहकशों सी,
तुम्हारे नाम के इन खुशनुमा लफ़ज़ों में ढलती है
के जिन के लम्स से होठों पे जुगनु रक्स करते है,
तुम्हारे ख्वाब का रिश्ता मेरी नींदों से मिलता है,
तो दिल आबाद होता है,
मेरा हर चाक सिलता है,
तुम्हारे नाम का तारा मेरी रातों में खिलता है....

मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है

मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है

बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है

हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को

मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है

न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई

वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है

समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक

जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है

उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का

वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती

झिलमिल सी एक लड़की

झिलमिल सी एक लड़की
हवा के संग - संग लहराती सी
कुछ - कुछ नाराज़ ज़िंदगी से
और कुछ - कुछ ज़िंदगी पे मुस्कुराती सी !

किनारे की लहरों सी उठती बिखरती
नाव के जैसे डगमगाती सी
अंधेरे में पानी के किनारे कहीं
जुग्नो - ओं के संग जगमगाती सी !

ख्यालों में खोकर लातों को अपनी
कभी सुलझती कभी उलझती सी
नजाकत से जुल्फों को झटक फ़िर अपनी
धीमे से पलकें झुकाती सी !

चंचल सी नज़रें हस पडें जब अचानक
उस हसी को हया से फ़िर छुपाती सी
जो नाराज़ हो तो आँखें फैलाकर
गुस्से से मुहँ फुलाती सी !

कभी लफ्ज़ के सहारे छु लेती दिल को
कभी नज़रों से ही दास्तानें सुनती सी
कभी मुश्किलों से न डरने वाली
अंधेरे में मासूमियत से घबराती सी !

झिलमिल सी वो एक लड़की
परदे के पीछे शर्माती सी
एक पल को नज़र मिलाके मुझसे
नज़र के साथ दिल भी चुराती थी

प्यार.......


दोस्तों, वादे के मुताबिक मुझे सिर्फ और सिर्फ शेर या कवितायें ही यहाँ पोस्ट करनी चाहिए, लेकिन आज रहा नहीं गया, कहीं से सुना था तो आज सोचा लिख दूँ...
एक चिडिया को एक सफ़ेद गुलाब से प्यार हो गया , उसने गुलाब को प्रपोस किया ,
गुलाब ने जवाब दिया की जिस दिन मै लाल हो जाऊंगा उस दिन मै तुमसे प्यार करूँगा ,
जवाब सुनके चिडिया गुलाब के आस पास काँटों में लोटने लगी और उसके खून से गुलाब लाल हो गया,
ये देखके गुलाब ने भी उससे कहा की वो उससे प्यार करता है पर तब तक चिडिया मर चुकी थी


इसीलिए कहा गया है की सच्चे प्यार का कभी भी इम्तहान नहीं लेना चाहिए,
क्यूंकि सच्चा प्यार कभी इम्तहान का मोहताज नहीं होता है ,
ये वो फलसफा; है जो आँखों से बया होता है ,

ये जरूरी नहीं की तुम जिसे प्यार करो वो तुम्हे प्यार दे ,
बल्कि जरूरी ये है की जो तुम्हे प्यार करे तुम उसे जी भर कर प्यार दो,
फिर देखो ये दुनिया जन्नत सी लगेगी
प्यार खुदा की ही बन्दगी है ,खुदा भी प्यार करने वालो के साथ रहता है

तेरे बारे में जब सोचा नहीं था,


तेरे बारे में जब सोचा नहीं था,
मैं तन्हा था मगर इतना नहीं था,
तेरी तस्वीर से करता था बातें,
मेरे कमरे में आईना नहीं था,
समन्दर ने मुझे प्यासा ही रखा,
मैं जब सहरा में था प्यासा नहीं था,
मनाने रुठने के खेल में,
बिछड जायेगे हम ये सोचा नहीं था,
सुना है बन्द कर ली उसने आँखे,
कई रातों से वो सोया नहीं था

खवाब देता हूँ मैं

कभी महसूस करो मुझे,
मेरे साथ बैठो, के बातें करो,
खवाब जिंदा हो उठेंगे,
क्यों कि खवाब देता हूँ मैं,
शाम कि दहलीज से निकल कर,
रात के सिरहाने से गुजरता हुआ,
तुम्हारी हसीन आखों का गुलाम,
तुम्हारी पलकों में रहता हूँ,
महसूस करो मुझे भी कभी,
क्यों कि खवाब देता हूँ मैं,
यादों की उंगली पकड़ कर,
पलको की तामीर से फिसल कर,
होटों पे मुस्कान बनकर,
हमेशा, तुम्हे खुश रखता हूँ मैं,
महसूस करो मुझे भी कभी,
क्यों कि खवाब देता हूँ मैं,
मैं वही हूँ, जिसे किसी दुआ में माँगा था तुमने,
मैं वही हूँ, जिसे खुदा ने तुम्हे बक्शा है,
बचपन की नामुराद चाहत का नतीजा हूँ मैं,
बचपन से तुम्हारे साथ रहता हूँ मैं,
अब तो महसूस करो मुझे भी कभी,
कि खवाब देता हूँ मैं,

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है,

कुछ ना कुछ तो जरूर होना है,
सामना आज उनसे होना है।

तोडो फेंको रखो, करो कुछ भी,
दिल हमारा है क्या खिलौना है?

जिंदगी और मौत का मतलब,
तुमको पाना है तुमको खोना है ।

इतना डरना भी क्या है दुनिया से,
जो भी होना है, वो तो होना है।

उठ के महफ़िल से मत चले जाना,
तुमसे रोशन ये कोना कोना है।