शरबती आँख में फैला है काजल के यूँ
लरजती शाम में श्यामल सा बादल के यूँ
खूबसूरती तमाम खुदा ने लुटा दी यहीं
ओढा है वादी ने धुंध का आँचल के यूँ
तो भी साथ होता है जब वो नहीं होता
दिमाग-ओ-दिल में है मची खलबल के यूँ
कुछ अल्फाज़ ले कर चन्द खुश लम्हों से
है संवारी सजाई मैने ग़ज़ल के यूँ
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