September 12, 2009

शाम से आँख में नमी सी है

शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है,


दफ़न कर दो हमें कि सांस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है,

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर,
इसकी आदत भी आदमी सी है,


कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी,
एक तस्लीम लाज़मी सी है. 

3 comments:

  1. शायरों के नाम भी लिखा करे |

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  2. umda rachna.

    bhai ye batao ye kisi rachna hai.

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  3. भाई माफ़ किज़ियेगा। मैने ध्यान नही दिया। आगे से ध्यान रखुंगा। ये रचना गुलज़ार महोदय की है।

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