September 3, 2009

झिलमिल सी एक लड़की

झिलमिल सी एक लड़की
हवा के संग - संग लहराती सी
कुछ - कुछ नाराज़ ज़िंदगी से
और कुछ - कुछ ज़िंदगी पे मुस्कुराती सी !

किनारे की लहरों सी उठती बिखरती
नाव के जैसे डगमगाती सी
अंधेरे में पानी के किनारे कहीं
जुग्नो - ओं के संग जगमगाती सी !

ख्यालों में खोकर लातों को अपनी
कभी सुलझती कभी उलझती सी
नजाकत से जुल्फों को झटक फ़िर अपनी
धीमे से पलकें झुकाती सी !

चंचल सी नज़रें हस पडें जब अचानक
उस हसी को हया से फ़िर छुपाती सी
जो नाराज़ हो तो आँखें फैलाकर
गुस्से से मुहँ फुलाती सी !

कभी लफ्ज़ के सहारे छु लेती दिल को
कभी नज़रों से ही दास्तानें सुनती सी
कभी मुश्किलों से न डरने वाली
अंधेरे में मासूमियत से घबराती सी !

झिलमिल सी वो एक लड़की
परदे के पीछे शर्माती सी
एक पल को नज़र मिलाके मुझसे
नज़र के साथ दिल भी चुराती थी

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