September 3, 2009

क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,


क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं ,
जाने क्यूं सभी शक करते हैं मुझ पर ,
जब कोई सूखा फूल मेरी किताबों में मिलता ही नहीं ,
कशिश तो बहुत थी मेरी मोहब्बत में ,
मगर क्या करूँ कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं ,
खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगू ,
पर सुना है वो भी मरने से पहले किसी से मिलता ही नहीं
lavshaily: क्यूं रखूं मैं अब अपनी कलम में स्याही ,
जब कोई अरमान दिल में मचलता ही नहीं ,
जाने क्यूं सभी शक करते हैं मुझ पर ,
जब कोई सूखा फूल मेरी किताबों में मिलता ही नहीं ,
कशिश तो बहुत थी मेरी मोहब्बत में ,
मगर क्या करूँ कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं ,
खुदा मिले तो उससे अपना प्यार मांगू ,
पर सुना है वो भी मरने से पहले किसी से मिलता ही नहीं

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