September 3, 2009

तुम्हारे नाम का तारा मेरी रातों में खिलता है....

तुम्हारा नाम कुछ ऐसे मेरे होठों पे खिलता है
अन्धेरी रात में जैसे
अचानक चाँद, बादल के किसी कोने से झाँकता है,
और सारे मन्ज़रों में जैसे रोशनी सी फ़ैल जाती है,
और जैसे लरज़ती फ़ूलों की डाली, ओस के कतरे पहन के मुस्कुराती है।
तो खुशबू बाग की दीवार के रोके से नही रुकती,
उसी खुशबू के दाग से मेरा हर चाक सिलता है,
तुम्हारे नाम क तारा मेरी मेरी सांसों में खिलता है,
तुम्हे जब भी देखता हुं हर सफ़र की शाम से पहले,
किसी उलझी हुयी गुमनाम सी सोच की कैद में
किसी रूखे - बेनाम लमहे की खुशबू में,
किसी मौसम के दामन में किसी ख्वाहिश के पहलू में
तो इस खुशरंग मन्ज़र में तुम्हारी याद का रास्ता,
नज़ाने किस तरफ़ ले जाता है,
और फ़िर ऐसे में मेरे हमराह चलता है,
के आंखोँ में सितारों की गुज़र-गाहें सी बनती है,
धनक की कहकशों सी,
तुम्हारे नाम के इन खुशनुमा लफ़ज़ों में ढलती है
के जिन के लम्स से होठों पे जुगनु रक्स करते है,
तुम्हारे ख्वाब का रिश्ता मेरी नींदों से मिलता है,
तो दिल आबाद होता है,
मेरा हर चाक सिलता है,
तुम्हारे नाम का तारा मेरी रातों में खिलता है....

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