September 19, 2009

बहते पानी पे तेरा नाम लिखा करते हैं

ये मेरे एक मित्र ने लिखा है, "साहिल - अपूर्व" आप भी ज़रा गौर कीजिये
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बहते पानी पे तेरा नाम लिखा करते हैं
लब-ए-खा़मोश का अंजाम लिखा करते हैं

कितना चुपचाप गुजरता है मौसम का सफ़र
तन्हा दिन और उदास शाम लिखा करते हैं

काश, इक बार तो वो ख़त की इबारत पढ़ते
अपनी आँखों मे सुबह-ओ-शाम लिखा करते हैं

लब-ए-बेताब की यह तिश्नगी मुक़द्दर है
अश्क बस बेबसी का जाम लिखा करते हैं

जमाने से सही, उनको पर खबर तो मिली
इश्क़ मे रुसबाई को ईनाम लिखा करते हैं

रात जलते हैं, सहर होती है बुझ जाते हैं
हम सितारों को दिल-ए-नाक़ाम लिखा करते हैं

कभी हम खुद से बिना बात रूठ जाते हैं
कभी खुद को ही ख़त गुमनाम लिखा करते हैं

लौट भी आओ, अब तन्हा नही रहा जाता
जिंदगी तुझको हम पैगाम लिखा करते हैं|

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