October 3, 2009

अकसर जिस्म जलता है तेरे जिस्म को छूने के लिए

लौ मेरी गोदी में पड़ा, रात की तन्हाई में
अकसर जिस्म जलता है तेरे जिस्म को छूने के लिए

हाथ उठते हैं तेरी लौ को पकड़ने के लिए
साँसें खिंच-खिंचके चटख जाती हैं तागों की तरह

हाँफ जाती है बिलखती हुई बाँहों की तलाश
और हर बार यही सोचा है तन्हाई में मैंने

अपनी गोदी से उठाकर यह तेरी गोद में रख दूँ
रुह की आग में ये आग भी शामिल कर दूँ

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