October 11, 2009

चंद लम्हाते हिज्र का तमाशा देखो

चंद लम्हाते हिज्र का तमाशा देखो
आब-ओ-दाना है यूँ कर उजड़ता देखो
बानगी वस्ल के लम्हों की क्या बतलायें
मिला हो रोते बच्चे को खिलौना देखो
भागती दौड़ती ज़िन्दगी की मसरुफियत में
हुआ है गुम यहीं-कहीं बचपना देखो
वो शख्स इक बूँद की गुजारिश थी जिसे
सागर है मिला फिर भी मचलता देखो
वो 'मारीच' है कभी भी मिल न पाएगा
क्यों बंद आँख से उसे बारहा देखो
ज़ाहिर हो चले राज़ वहशत के सभी
क्यों उस वहशी में तुम रहनुमा देखो
दीवाना है लगे वो कही 'शातिर' तो नहीं
देखो गौर से उसे एं दोस्त ज़रा देखो

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