ज़रा चेहरे से कमली को हटा दो या रसूल-अल्लाह,
हमें भी अपना दीवाना बना दो या रसूल-अल्लाह,
मोहब्बत ग़ैर से मेरी छुड़ा दो या रसूल-अल्लाह,
मेरी सोई हुई क़िस्मत जगा दो या रसूल-अल्लाह,
बड़ी क़िस्मत हमारी है के उम्मत में तुम्हारी हैं,
भरोसा दीन-ओ-दुनिया में तुम्हारा या रसूल-अल्लाह,
अंधेरी कब्र में मुझको अकेला छोड़ जायेंगे,
वहां हो फ़ज़ल से तेरे उजाला या रसूल-अल्लाह,
ख़ुदा मुझको मदीने पे जो पहुँचाये तो बेहतर है,
के रोज़े पर ही दे दूंजां उजाकर या रसूल-अल्लाह,
बहुत ख़ूब!
ReplyDeleteसुबहान अल्लाह!
एक पाकीज़गी और इबादत का एह्सास हुआ यहां आ कर
अच्छी ना’त ए पाक से रू ब रू हुए
बड़ी क़िस्मत हमारी.............
वाह ,वाक़ई ये सही है
अंधेरी क़ब्र में .............
सच हैं उसी नूर की ज़रूरत है
मुबारक हो