August 20, 2010

ज़रा चेहरे से कमली

ज़रा चेहरे से कमली को हटा दो या रसूल-अल्लाह,
हमें भी अपना दीवाना बना दो या रसूल-अल्लाह,

मोहब्बत ग़ैर से मेरी छुड़ा दो या रसूल-अल्लाह,
मेरी सोई हुई क़िस्मत जगा दो या रसूल-अल्लाह,

बड़ी क़िस्मत हमारी है के उम्मत में तुम्हारी हैं,
भरोसा दीन-ओ-दुनिया में तुम्हारा या रसूल-अल्लाह,

अंधेरी कब्र में मुझको अकेला छोड़ जायेंगे,
वहां हो फ़ज़ल से तेरे उजाला या रसूल-अल्लाह,

ख़ुदा मुझको मदीने पे जो पहुँचाये तो बेहतर है,
के रोज़े पर ही दे दूंजां उजाकर या रसूल-अल्लाह,

1 comment:

  1. बहुत ख़ूब!
    सुबहान अल्लाह!
    एक पाकीज़गी और इबादत का एह्सास हुआ यहां आ कर
    अच्छी ना’त ए पाक से रू ब रू हुए
    बड़ी क़िस्मत हमारी.............
    वाह ,वाक़ई ये सही है
    अंधेरी क़ब्र में .............
    सच हैं उसी नूर की ज़रूरत है
    मुबारक हो

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