August 29, 2009

है इख्तियार में तेरे तो मौज-सा कर दे

है इख्तियार में तेरे तो मौज-सा कर दे
वो शख्स मेरा नहीं है उससे मेरा कर दे
मेरे खिजां कहीं खत्म ही नहीं होता
ज़रा-सी दूर तो रास्ता हरा-भरा कर दे
मैं उसके शोर को देखूं वो मेरा सब ....
मुझे चराग बना दे उसे हवा कर दे
अकेली शाम बहुत ही उदास करती है
किसी को भेज, कोई मेरा हम-नवा कर दे

1 comment:

  1. sandeepji! iss ghazal ko suniyega aur gaur kijiyega kahin kahin truti rah gayi hai.

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