August 25, 2009

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम

पत्थर के खुदा, पत्थर के सनम
पत्थर के ही इंसान पायें हैं
तुम शहर-ऐ-मोहब्बत कहते हो
हम जान बचा कर आए हैं
बुतखाना समझते हो जिसको
पूछो ना वहां क्या हालत है
हम लोग वहीँ से लौटे हैं
बस शुक्र करो लौट आए हैं
हम सोच रहे हैं मुद्दत से
अब उम्र गुजारें भी तो कहाँ
सेहरा में खुशी के फूल नहीं
शहरों में ग़मों के साए हैं
होठों पे तबस्सुम हल्का सा
आँखों में नमी-सी ए फाकिर
हम अहल-ऐ-मोहब्बत पर अक्सर
ऐसे भी ज़माने आए हैं.

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