August 27, 2010

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में

खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में

जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में

शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में

रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में

दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।

1 comment:

  1. खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
    एक पुराना खत खोला अनजाने में

    दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
    किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।

    ग़ज़ल मतले से लेकर मक्ते तक ही
    बहुत असरदार है ...
    मुबारकबाद .

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